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________________ २० ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र वह एक पद्मवरवेदिका एवं एक वनखंड से सब ओर से परिवेष्टित है। दोनों का परिमाण पूर्ववत् है। सिद्धायतन कूट के ऊपर अति समतल तथा रमणीय भूमिभाग है। वह मृदंग के ऊपरी भाग जैसा समतल है। वहाँ वाणव्यन्तर देव और देवियां विहार करते हैं। उस अति समतल, रमणीय भूमिभाग के ठीक बीच में एक बड़ा सिद्धायतन है। वह एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा और कुछ कम एक कोस ऊँचा है। वह अभ्युन्नत-ऊँची, सुकृत-सुरचित वेदिकाओं, तोरणों तथा सुन्दर पुत्तलिकाओं से सुशोभित है। उसके उज्ज्वल स्तम्भ चिकने, विशिष्ट, सुन्दर आकार युक्त उत्तम वैडूर्य मणियों से निर्मित हैं । उसका भूमिभाग विविध प्रकार के मणियों और रत्नों से खचित है, उज्ज्वल है, अत्यन्त समतल तथा सुविभक्त है। उसमें ईहामृगभेड़िया, वृषभ-बैल, तुरग-घोड़ा, मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, कस्तूरी मृग, शरभ-अष्टापद, चँवर, हाथी, वनलता, (नागलता, अशोकलता, चंपकलता, आम्रलता, वासन्तिकलता, अतिमुक्तकलता, कुंदलता, श्यामलता) तथा पद्मलता के चित्र अंकित हैं। उसकी स्तूपिका-शिरोभाग स्वर्ण, मणि और रत्नों से निर्मित है। जैसा कि अन्यत्र वर्णन है. वह सिद्धायतन अनेक प्रकार की पंचरंगी मणियों से विभूषित है। उसके शिखरों पर अनेक प्रकार की पंचरंगी ध्वजाएँ तथा घंटे लगे हैं। वह सफेद रंग का है। वह इतना चमकीला है कि उससे किरणे प्रस्फुटित होती हैं। (वहाँ की भूमि गोबर आदि से लिपी है। उसकी दीवारें खड़िया, कलई आदि से पुती हैं। उसकी दीवारों पर गोशीर्ष चन्दन तथा सरस-आर्द्र लाल चन्दन के पाँचों अंगुलियों और हथेली सहित हाथ की छापें लगी हैं। वहाँ चन्दन-कलश-चन्दन से चर्चित मंगल-घट रखे हैं। उसका प्रत्येक द्वार भाग चन्दन कलशों और तोरणों से सजा है। जमीन से ऊपर तक के भाग को छूती हुई बड़ीबड़ी, गोल तथा लम्बी अनेक पुष्पमालाएँ वहाँ लटकती हैं । पाँचों रंगों के सरस-ताजे फूलों के ढेर के ढेर वहाँ चढ़ाये हुए हैं, जिनसे वह बड़ा सुन्दर प्रतीत होता है। काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहाँ का वातावरण बड़ा अलोज्ञ है, उत्कृष्ट सौरभमय है। सुगन्धित धुएँ की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बन रहे हैं।) उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। वे द्वार पांच सौ धनुष ऊँचे और ढाई सौ धनुष चौड़े हैं। उनका उतना ही प्रवेश-परिमाण है। उनकी स्तूपिकाएँ श्वेत-उत्तम-स्वर्णनिर्मित हैं। द्वार ' अन्यत्र वर्णित हैं। उस सिद्धायतन के अन्तर्गत बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है, जो मृदंग आदि के ऊपरी भाग के सदृश समतल है। उस सिद्धायतन के बहुत समतल और सुन्दर भूमिभाग के ठीक बीच में देवच्छन्दकदेवासन-विशेष है। वह पाँच सौ धनुष लम्बा, पाँच सौ धनुष चौड़ा और कुछ अधिक पाँच सौ धनुष ऊँचा है, सर्व रत्नमय है। यहाँ जिनोत्सेध परिमाण-तीर्थंकरों की दैहिक ऊँचाई जितनी ऊँची एक सौ आठ जिन-प्रतिमाएँ हैं। उन जिन-प्रतिमाओं की हथेलियाँ और पगलियाँ तपनीय-स्वर्ण निर्मित हैं। उनके नख अन्त:खचित १. देखें राजप्रश्नीय सूत्र १२१-१२३
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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