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प्रथम वक्षस्कार]
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से गोल तथा भीतर से चौरस हैं। भवनों का वर्णन अन्यत्र द्रष्टव्य है।
___वहाँ देवराज, देवेन्द्र शक्र के अत्यन्त ऋद्धिसम्पन्न द्युतिमान्, (बलवान, यशस्वी) तथा सौख्यम्पन्न सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण संज्ञक आभियोगिक देव निवास करते हैं।
. उन आभियोग-श्रेणियों के अति समतल, रमणीय भूमिभाग से वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में-दोनों ओर पाँच-पाँच योजन ऊँचे जाने पर वैताढ्य पर्वत का शिखर-तल है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तरदक्षिण चौड़ा है। उसकी चौड़ाई दश योजन है, लम्बाई पर्वत जितनी है। वह एक पद्मवरवेदिका से तथा एक वनखंड से चारों ओर परिवेष्टित है। उन दोनों का वर्णन पूर्ववत् है।
१७. वेयड्डस्स णं भंते ! पव्वयस्स सिहरतलस्स केरिसए आगारभावपडोआरे पण्णत्ते ?
गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते। से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोभिए (तत्थ तत्थ तहिं तहिं देसे) वावीओ, पुक्खरिणीओ, (तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे) वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति जावभुंजमाणा विहरंति।
[१७] भगवन् ! वैताढ्य पर्वत के शिखर तल का आकार-स्वरूप कैसा है ?
गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय है। वह मृदंग के ऊपर के भाग जैसा समतल है, बहुविध पंचरंगी मणियों से उपशोभित है। वहाँ स्थान-स्थान पर बावड़ियाँ एवं सरोवर हैं । वहाँ अनेक वाणव्यन्तर देव, देवियां निवास करते हैं, पूर्व-आचीर्ण पुण्यों का फलभोग करते हैं।
१८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे वेअड्डपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ?
गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धाययणकूडे १. दाहिणड्डभरहकूडे २. खंडप्पवायगुहाकूडे ३. मणिभद्दकूडे ४. वेअड्डकूडे ५. पुण्णभद्दकूडे ६.तिमिसगुहाकूडे ७. उत्तरड्डभरहकूडे ८. वेसमणकूडे ९।
- [१८] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत के कितने कूट-शिखर या चोटियाँ
गौतम ! वैताढ्य पर्वत के नौ कूट हैं। वे इस प्रकार हैं-१. सिद्धायतनकूट, २. दक्षिणार्धभरतकूट, ३.खण्डप्रपातगुहाकूट, ४. मणिभद्रकूट, ५. वैताढ्यकूट, ६. पूर्णभद्रकूट, ७. तमिस्रगुहाकूट, ८. उत्तरार्धभरतकूट, ९. वैश्रमणकूट। सिद्धायतनकूट
१९. कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेअड्डपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ?
१. प्रज्ञापना सूत्र २-४३ २. देखें सूत्र संख्या ६