SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र श्रेणियां-अभियोगिक देवों-शक्र, लोकपाल आदि के आज्ञापालक देवों-व्यन्तर देवविशेषों की आवासपंक्तियां हैं। वे पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी हैं। उनकी चौड़ाई दश-दश योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी है। वे दोनों श्रेणियां अपने दोनों ओर दो-दो पद्मवरवेदिकाओं एवं दो-दो वनखंडों से परिवेष्टित हैं। लम्बाई में दोनों पर्वत-जितनी हैं। वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। १६. अभिओगसेढीणं भंते ! केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे. पण्णत्ते जाव तणेहिं उवसोभिए वण्णाइं जाव तणाणं सद्दोत्ति। तासि णं अभिओगसेढीणं तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ अ आसयंति, सयंति, (चिटुंति, णीसीअंति, तुअटेंति, रमंति, ललंति, कीलंति, मेहंति पुरापोराणाणं सुपरक्कंताणं, सुभाणं, कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाण-) फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति। तासु णं आभिओगसेढीसु सक्कस देविंदस्स देवरण्णो सोमजमवरुणवेसमणकाइआणं आभिओगाणं देवाणं बहवे भवणा पण्णत्ता। ते णं भवणा बाहिं वट्टा, अंतो चउरंसा वण्णओ। तत्थ णं सक्कस्स, देविंदस्स, देवरणो सोमजमवरुणवेसमणकाइआ बहवे आभिओगा देवा महिड्डिआ, महज्जुईआ,(महाबला, महायसा,) महासोक्खा पलिओवमट्टिइया परिवसंति। तासिणं आभिओगसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्डस्स पव्वयस्स उभओ पासिं पंच पंच जोयणाई उड्डे उप्पइत्ता, एत्थ णं वेयड्डस्स पव्वयस्स सिहरतले पण्णत्तेपाईणपडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिपणे, दस जोअणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमगे आयामेणं, से णं इक्काए पउमवरवेइयाए, इक्केणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, पमाणं वण्णओ दोण्हंपि। [१६] भगवन् ! आभियोग्य-श्रेणियों का आकार-स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उनका बड़ा समतल, रमणीय भूमिभाग है। मणियों एवं तृणों से उपशोभित है। मणियों के वर्ण, तृणों के शब्द आदि अन्यत्र विस्तार से वर्णित हैं। २ - वहाँ बहुत से देव, देवियां आश्रय लेते हैं, शयन करते हैं, (खड़े होते हैं, बैठते हैं, त्वग्वर्तन करते हैं-देह को दायें-बायें घुमाते हैं,-मोड़ते हैं, रमण करते हैं, मनोरंजन करते हैं, क्रीड़ा करते हैं, सुरत-क्रिया करते हैं। यों वे अपने पूर्व-आचरित शुभ, कल्याणकर-पुण्यात्मक कर्मों के फलस्वरूप) विशेष सुखों का उपयोग करते हैं। उन अभियोग्य-श्रेणियों में देवराज, देवेन्द्र शक्र के सोम-पूर्व दिक्पाल, यम-दक्षिण दिक्पाल, वरुणपश्चिम दिक्पाल तथा वैश्रमण-उत्तर दिक्पाल आदि आभियोगिक देवों के बहुत से.भवन हैं। वे भवन बाहर १. देखें सूत्र संख्या ६ २. देखें राजप्रश्नीय सूत्र ३१-४० तथा १३८-१४२
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy