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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र विभूषित, वज्रमय खुरयुक्त, मणि-स्वर्ण आदि द्वारा विविध प्रकार से सुसज्ज, उक्त खुरों से ऊर्ध्ववर्ती विखुर युक्त, स्फटिकमय दाँत युक्त, तपनीय स्वर्णमय जिह्वायुक्त, तालुयुक्त, तपनीय स्वर्ण-निर्मित योत्रक - रस्सी द्वारा विमान में सुयोजित, यथेच्छ गमनशील, प्रीति या चैतसिक उल्लास के साथ चलने वाले, मन की गति की ज्यों सत्वर गमन करते वाले, मन को प्रिय लगने वाले, अत्यधिक तेजगति युक्त, उच्च, गंभीर स्वर की गर्जना करते हुए, अपनी मधुर मनोहर ध्वनि द्वारा आकाश को आपूर्ण करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार वृषभरूपधारी देव विमान के पश्चिमी पार्श्व का परिवहन करते हैं । ४०४ ] चन्द्र विमान के उत्तर में श्वेतवर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त - जन-जन को प्रिय लगने वाले, सुन्दर प्रभायुक्त, वेग एवं बल से आपूर्ण संवत्सर - समय - युवावस्था से युक्त, हरिमेलक तथा मल्लिका - चमेली की कलियों जैसी आँखों से युक्त, चंचरित - कुटिल गमन - तिरछी चाल या तोते की चोंच की ज्यों वक्रता के साथ अपने पैर का उच्चताकरण—ऊर्ध्वकरण, ललित - विलासपूर्ण गति, पुलित - एक विशिष्ट गति, चल-वायु के तुल्य अतीव चपल गतियुक्त, लंघन - गर्त आदि का अतिक्रमण - खड्डे आदि फाँद जाना, वल्गन - उत्कूर्दनऊँटा कूदना, उछलना, धावन -‍ - शीघ्रतापूर्वक सीधा दौड़ना, धोरण, गति - चातुर्य - चतुराई से दौड़ना, त्रिपदी - भूमि पर तीन पैर रखना, जयिनी - गमनानन्तर जयवती - विजयशीला, जविनी - वेगवती - इन गतिक्रमों में शिक्षित, अभ्यस्त, गले में प्रस्थापित हिलते हुए रम्य, उत्तम आभूषणों से युक्त, नीचे की ओर सम्यक्तया नत हुए - झुके हुए देह के पार्श्वभागों से युक्त, देह के अनुरूप प्रमाणोपेत पार्श्वभागयुक्त, सहजतया सुनिष्पन्नसुगठित पार्श्वभागयुक्त, परिपुष्ट, गोल तथा सुन्दर संस्थानमय कमरयुक्त, लटकते हुए, लम्बे, उत्तम लक्षणमय, समुचित प्रमाणोपेत, रमणीय चामर- - पूँछ के बालों से युक्त, अत्यन्त सूक्ष्म, सुनिष्पन्न, स्निग्ध - चिकने, मुलायम देह के रोमों की छवि से युक्त, मृदु- कोमल, विशद उज्ज्वल अथवा प्रत्येक रोम कूप में एक-एक होने से परस्पर असम्मिलित—नहीं मिले हुए, पृथक्-पृथक् परिदृश्यमान, सूक्ष्म, उत्तम लक्षणयुक्त, विस्तीर्ण, केसरपालि—स्कन्धकेशश्रेणी - कन्धों पर उगे बालों की पंक्तियों से सुशोभित, ललाट पर धारण कराये हुए दर्पणाकार आभूषणों से युक्त, मुखमण्डक - मुखाभरण, अवचूल - लटकते लूँबे, चँवर एवं दर्पण के आकार के विशिष्ट आभूषणों से शोभित, परिमण्डित - सुसज्जित कटि - कमरयुक्त, तपनीय - स्वर्णमय खुर, जिह्वा तथा तालुयुक्त, तपनीय-स्वर्णनिर्मित रस्सी द्वारा विमान से सुयोजित - सुन्दररूप में जुड़े हुए, इच्छानुरूप गतियुक्त (प्रीति तथा उल्लास पूर्वक चलने वाले, मन के वेग की ज्यों चलने वाले) मन को रमणीय प्रतीत होने वाले, अत्यधिक तेज गतियुक्त, अपरिमित बल, वीर्य, पुरुषार्थ तथा पराक्रमयुक्त, उच्चस्वर से हिनहिनाहट करते हुए, अपनी मनोहर ध्वनि द्वारा गगन - मण्डल को आपूर्ण करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार अश्वरूपधारी देव विमान के उत्तरी पार्श्व को परिवहन करते हैं । चार-चार हजार सिंहरूपधारी देव, चार-चार हजार गजरूपधारी देव, चार-चार हजार वृषभरूपधारी देव तथा चार-चार हजार अश्वरूपधारी देव - कुल सोलह-सोलह हजार देव चन्द्र और सूर्य विमानों का परिवहन करते हैं । ग्रहों के विमानों का दो-दो हजार सिंहरूपधारी देव, दो-दो हजार गजरूपधारी देव, दो-दो हजार
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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