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________________ सप्तम वक्षस्कार] - [४०३ तीक्ष्ण, कान्त अंकुशयुक्त, तपनीय-स्वर्ण-निर्मित, सुबद्ध-सुन्दर रूप में बंधी कक्षा-हृदयरज्जू-छाती पर, पेट पर बाँधी जाने वाली रस्सी से युक्त, दर्प से-गर्व से उद्धत, उत्कट बलयुक्त, निर्मल, सघन मण्डलयुक्त, हीरकमय अंकुश द्वारा दी जाती ताड़ना से उत्पन्न ललिति-श्रुतिसुखद शब्दयुक्त, विविध मणियों एवं रत्नों से सज्जित, दोनों ओर विद्यमान छोटी छोटी घण्टियों से समायुक्त, रजतनिर्मित, तिरछी बँधी रस्सी से लटकते घण्टायुगल-दो घण्टाओं के मधुर स्वर-से मनोहर प्रतीत होते, सुन्दर, समुचित प्रमाणोपेत, वर्तुलाकार, सुनिष्पन्न, उत्तम लक्षणमय प्रशस्त, रमणीय बालों से शोभित पूंछ वाले, उपचित-मांसल, परिपूर्ण-पूर्ण अवयवमय, कच्छप की ज्यों उन्नत चरणों द्वारा लाघवपूर्वक-द्रुतगति से कदम रखते, अंकरत्नमय नखों वाले, तपनीय-स्वर्णमय जिह्वा तथा तालुयुक्त, तपनीय-स्वर्ण-निर्मित रस्सी द्वारा विमान के साथ सुन्दर रूप में जुड़े हुए, यथेच्छ गमन करने वाले, उल्लास के साथ चलने वाले, मन की गति की ज्यों सत्वर गमनशील, मन को रमणीय लगने वाले, अत्यधिक तेज गतियुक्त, अपरिमित बल, वीर्य, पुरुषार्थ एवं पराक्रमयुक्त, उच्च, गम्भीर स्वर से गर्जना करते हुए, अपनी मधुर, मनोहर ध्वनि द्वारा आकाश को आपूर्ण करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार गजरूपधारी देव विमान के दक्षिणी पार्श्व को परिवहन करते हैं। ' चन्द्र-विमान के पश्चिम में सफेद वर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त-जन-जन-प्रिय, सुन्दर, प्रभायुक्त, चलचपलइधन-उधर हिलते रहने के कारण अति चपल ककुद्-थूही से शोभित, घन-लोहमयी गदा की ज्यों निचित-ठोस, सुगठित, सुबद्ध-शिथिलतारहित, प्रशस्तलक्षणयुक्त, किञ्चित् झुके हुए होठों वाले चंक्रमितकुटिल गमन, टेढ़ी चाल, ललित-सविलास गति-सुन्दर, शानदार चाल, पुलित गति-आकाश को लांघ कर जाने जैसी उछाल पूर्ण चाल इत्यादि अत्यन्त चपल-त्वरापूर्ण, गर्वपूर्ण गति से शोभित, सन्नत-पार्श्वनीचे की ओर सम्यक् रूप से नत हुए-झुके हुए देह के पार्श्व-भागों से युक्त, संगत-पार्श्व-देह-प्रमाण के अनुरूप पार्श्व-भागयुक्त, सुजात-पार्श्व-सुनिष्पन्न-सहजतया सुगठित पार्श्वयुक्त, पीवर-परिपुष्ट, वर्तितगोल, सुसंस्थित-सुन्दर आकारमय कमर वाले, अवलम्ब-प्रालम्ब-लटकते हुए लम्बे, उत्तम लक्षणमय, प्रमाणयुक्त-समुचित प्रमाणोपेत, रमणीय, चामर-पूँछ के सघन, धवल केशों से शोभित, परस्पर समान खुरों से युक्त, सुन्दर पूँछ युक्त, समलिखित-समान रूप में उत्कीर्ण किये गये से-कोरे गये से, तीक्ष्ण अग्रभाग मय, संगत-यथोचित मानोपेत सींगों से युक्त, तनुसूक्ष्म-अत्यन्त सूक्ष्म, सुनिष्पन्न, स्निग्ध-चिकने, मुलायम, लोम-देह के बालों की छवि से-शोभा से युक्त, उपचित-पुष्ट, मासंल, विशाल, परिपूर्ण, स्कन्ध-प्रदेशकन्धों से सुन्दर प्रतीयमान, नीलम की ज्यों भासमान कटाक्ष-अर्धप्रेक्षित-आधी निगाह या तिरछी निगाह युक्त नेत्रों से शोभित, युक्तप्रमाण-यथोचित प्रमाणोपेत, विशिष्ट, प्रशस्त, रमणीय, गग्गरक नामक परिधानविशेष-विशिष्ट वस्त्र से विभूषित, हिलने-डुलने से बजने जैसी ध्वनि से समवेत (गले में धारण किये) घरघरक संज्ञक आभरण-विशेष से परिमण्डित-सुशोभित गले से युक्त, वक्षःस्थल पर वैकक्षिक-तिर्यक् या तिरछे रूप में प्रस्थापित, विविध प्रकार की मणियों, रत्नों तथा स्वर्ण द्वारा निर्मित घण्टियों की श्रेणियों-कतारों से सुशोभित, वरघण्टा-उपर्युक्त घण्टियों से विशिष्टतर घण्टाओं की माला से उज्ज्वल श्री-शोभा धारण किये हुए, पद्म-सूर्यविकासी कमल, उत्पल-चन्द्रविकासी कमल तथा अखण्डित, सुरभित पुष्पों की मालाओं
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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