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________________ सप्तम वक्षस्कार ] [ ४०५ वृषभरूपधारी देव और दो-दो हजार अश्वरूपधारी देव - कुल आठ-आठ हजार देव परिवहन करते है । नक्षत्रों के विमानों का एक-एक हजार सिंहरूपधारी देव, एक - एक हजार गजरूपधारी देव, एकएक हजार वृषभरूपधारी देव एवं एक-एक हजार अश्वरूपधारी देव - कुल चार चार हजार देव परिवहन करते है । तारों के विमानों का पाँच-पाँच सौ सिंहरूपधारी देव, पाँच-पाँच सौ गजरूपधारी देव, पाँच-पाँच सौ वृषभरूपधारी देव एवं पाँच-पाँच सौ अश्वरूपधारी देव - कुल दो-दो हजार देव परिवहन करते है । उपर्युक्त चन्द्र - विमानों के वर्णन के अनुरूप सूर्य- विमान (ग्रह - विमानों, नक्षत्र - विमानों) और ताराविमानों का वर्णन है । केवल देव- समूह में- परिवाहक देवों की संख्या में अंतर है। विवेचन - चन्द्र आदि देवों के विमान किसी अवलम्बन के बिना स्वयं गतिशील होते हैं। किसी द्वारा परिवहन कर उन्हें चलाया जाना अपेक्षित नहीं है। देवों द्वारा सिंहरूप, गजरूप, वृषभरूप तथा अश्वरूप में उनका परिवहन किये जाने का जो यहाँ उल्लेख है, उस सन्दर्भ में ज्ञातव्य है - आभियोगिक देव तथाविध आभियोग्य नामकर्म के उदय से अपने समजातीय या हीनजातीय देवों से समक्ष अपना वैशिष्ट्य, सामर्थ्य, अतिशय ख्यापित करने हेतु सिंहरूप में, गजरूप में, वृषभरूप में, तथा अश्वरूप में विमानों का परिवहन करते हैं । यों वे चन्द्र, सूर्य आदि विशिष्ट, प्रभावक देवों के विमानों को लिये चलना प्रदर्शित कर अपने अहं तुष्टि मानते हैं । ज्योतिष्क देवों की गति : ऋद्धि २०१. एतेति णं भंते ! चंदिम- सूरिअ - गहगण - नक्खत्त-तारारूवाणं कयरे सव्वसिग्घगई कयरे सव्वसिग्घतराए चेव । गोयमा ! चंदेर्हितो सूरा सव्वसिग्घगई, सूरेहिंतो गहा सिग्घगई, गहेहिंतो णक्खत्ता सिग्घगई, क्खतेहिंतो तारारूवा सिग्घगई, सव्वप्पगई चंदा, सव्वसिग्घगई तारारूवा इति । [२०१] भगवन् ! इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों में कौन सर्वशीघ्रगति हैं - चन्द्र आदि सर्व ज्योतिष्क देवों की अपेक्षा शीघ्रगतियुक्त हैं ? कौन सर्वशीघ्रतर गतियुक्त हैं ? गौतम ! चन्द्रों की अपेक्षा सूर्य शीघ्रगतियुक्त हैं, सूर्यों की अपेक्षा ग्रह शीघ्रगतियुक्त हैं, ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्र शीघ्रगतियुक्त हैं तथा नक्षत्रों की अपेक्षा तारे शीघ्रगतियुक्त हैं । इनमें चन्द्र सबसे अल्प या मन्दगतियुक्त है तथा तारे सबसे अधिक शीघ्रगतियुक्त हैं । २०२. एतेसि णं भंते ! चंदिम-सूरिअ-गह-णक्खत्त - तारारूवाणं कयरे सव्वमहिड्डिआ करे सव्वप्पिड्डिआ ? गोयमा ! तारारूवेहिंतो णक्खत्ता महिड्डिआ, णखत्तेहिंतो गहा महिड्डिआ, गहेहिंतो सूरिआ
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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