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है, ऐसा बतलाया गया है।
गति - क्रम
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
१९८. मन्दरस्स णं भंते! पव्वयस्स केवइआए अबाहाए जोइसं चारं चरइ । गोयमा ! इक्कारसहिं इक्कवीसेहिं जोअण-सएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ । लोगंताओ णं भंते! केवइआए अबाहाए जोइसे पण्णत्ते ?
गोयमा ! एक्कारस एक्कारसेहिं जोअण-सएहिं अबाहाए जोइसे पण्णत्ते। धरणितलाओ णं भंते ' ! सत्तहिं णउएहिं जोअण-सएहिं जोइसे चारं चरइत्ति, एवं सूरविमाणे अट्ठहिं सएहि, चंद-विमाणे अट्ठहिं असीएहिं, उवरिल्ले तारारूवे नवहिं जोअण-सएहिं चारं चरइ । जोइसस्स णं भंते ! हेट्ठिल्लाओ तलाओ केवइआए अबाहाए सूर - विमाणे चारं चरइ ?
गोमा ! दसहिं जोअणेहिं अबाहाए चारं चरइ, एवं चन्द- विमाणे णउईए जोअणेहिं चारं चरइ, उवरिल्ले तारारूवे दसुत्तरे जोअण-सए चारं चरइ, सूर - विमाणाओ चन्द - विमाणे असीईए अहिं चारं चरड़, सूर विमाणाओ जोअण-सए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरड़, चन्द - विमाणाओ वीसाए जोअणेहिं उवरिल्ले णं तारारूवे चारं चरइ ।
[१९८] भगवन् ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से कितने अन्तर पर गति करते हैं ?
गौतम ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से ११२१ योजन की दूरी पर गति करते हैं - गतिशील रहते हैं । भगवन् ! ज्योतिश्चक्र - तारापटल लोकान्त से - लोक के अन्त से, अलोक के पूर्व कितने अन्तर पर स्थिर - स्थित बतलाया गया है ?
गौतम ! वहाँ से ज्योतिश्चक्र ११११ योजन के अन्तर पर स्थित बतलाया गया है।
भगवन् ! अधस्तन्—नीचे का ज्योतिश्चक्र धरणितल से - समतल भूमि से कितनी ऊँचाई पर ि करता है ?
गौतम ! अधस्तन ज्योतिश्चक्र धरणितल से ७९० योजन की ऊँचाई पर गति करता है ।
इसी प्रकार सूर्यविमान धरणितल से ८०० योजन की ऊँचाई पर, चन्द्रविमान ८८० योजन की ऊँचाई पर तथा उपरितन - ऊपर के तारारूप - नक्षत्र - ग्रह - प्रकीर्ण तारे ९०० योजन की ऊँचाई पर गति करते हैं ।
भगवन् ! ज्योतिश्चक्र के अधस्तनतल से सूर्यविमान कितने अन्तर पर, कितनी ऊँचाई पर गमन कर
है ?
गौतम ! वह १० योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है ।
चन्द्र-विमान ९० योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है ।
उपरितन—ऊपर के तारारूप - प्रकीर्ण तारे ११० योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करते हैं ।
१. यहाँ इतना योजनीय है— 'उद्धं उप्पइत्ता केवइआए अबाहाए हिट्ठिल्ले जोइसे चारं चरइ ?'