________________
३९६ ]
इन पूर्ववर्णित पदों की संग्राहिका गाथा इस प्रकार है
योग, देवता, तारे, गोत्र, संस्थान, चन्द्र-सूर्य-योग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या, छाया - इनका वर्णन, जो उपर्युक्त है, समझ लेना चाहिए ।
अणुत्वादि-परिवार
१९६.
हिट्ठि ससि - परिवारो, मन्दरऽबाधा तहेव लोगंते । धरणितलाओ अबाधा, अंतो बाहिं च उद्धमुहे ॥ १ ॥ संठाणं च पमाणं, वहंति सीहगई इद्धिमन्ता य । तारंतरऽग्गमहिसी, तुडिअ पहु ठिई अ अप्पबहू ॥ २ ॥
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
अत्थि णं भंते ! चंदिम-सूरिआणं हिट्ठि पि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि, समेवि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि, उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ?
हंता गोयमा ! तं चेव उच्चारेअव्वं ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ- अस्थि णं० जहा जहा णं तेसिं देवाणं तव-नियम-वंभचेराणि ऊसिआई भवंति तहा तहा णं तेसि णं देवाणं एवं पण्णायए, तं जहा- अ - अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा, जहा जहा णं तेसिंदेवाणं तव-नियम-वंभचेराणि णो ऊसिआई भवंति तहा तहा णं तेसिं देवाणं एवं (णो ) पण्णायए, तं जहा - अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा ।
[१९६] सोलह द्वार
पहला द्वार—इसमें चन्द्र तथा सूर्य के अधस्तनप्रदेशवर्ती, समपंक्तिवर्ती तथा उपरितनप्रदेशवर्ती तारकमण्डल के - तारा विमानों के अधिष्ठातृ देवों का वर्णन है ।
दूसरा द्वार - इसमें चन्द्र- परिवार का वर्णन है ।
तीसरा द्वार - इसमें मेरु से ज्योतिश्चक्र के अन्तर - दूरी का वर्णन है ।
है ।
चौथा द्वार - इसमें लोकान्त से ज्योतिश्चक्र के पांचवाँ द्वार—इसमें भूतल से ज्योतिश्चक्र के
छठा द्वार—क्या नक्षत्र अपने चार क्षेत्र के भीतर चलते हैं, बाहर चलते हैं या ऊपर चलते है ? इस सम्बन्ध में इस द्वार में वर्णन है ।
सातवाँ द्वार - इसमें ज्योतिष्क देवों के विमानों के संस्थान - आकार का वर्णन है ।
आठवाँ द्वार - इसमें ज्योतिष्क देवों की संख्या का वर्णन है ।
नौवाँ द्वार - इसमें चन्द्र आदि देवों के विमानों को कितने देव वहन करते हैं, इस सम्बन्ध में वर्णन
अन्तर का वर्णन है ।
अन्तर का वर्णन है ।
दसवाँ द्वार - कौन देव शीघ्रगतियुक्त हैं, कौन मन्दगतियुक्त हैं, इस सम्बन्ध में इसमें वर्णन है । ग्यारहवाँ द्वार-कौन देव अल्प ऋद्धिवैभवयुक्त है, कौन विपुल वैभवयुक्त है, इस सम्बन्ध में इसमें