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सप्तम वक्षस्कार ]
तब सूर्य १६ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है। भगवन् ! चातुर्मासिक ग्रीष्मकाल के प्रथम - चैत्र मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! उसे तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं - १. उत्तराफाल्गुनी, २. हस्त तथा ३. चित्रा । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र १४ रातदिन परिसमाप्त करता है, हस्त नक्षत्र १५ रातदिन परिसमाप्त करता है तथा चित्रा नक्षत्र १ रातदिन परिसमाप्त करता है । ( १४+१५+१=३० दिनरात = १ मास ) । उस मास में सूर्य १२ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है 1 उस महीने के अन्तिम दिन परिपूर्ण तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है। भगवन् ! ग्रीष्मकाल के दूसरे - वैसाख मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! उसे तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं - १. चित्रा, २. स्वाति तथा ३. विशाखा ।
चित्रा नक्षत्र १४ रातदिन परिसमाप्त करता है, स्वाति नक्षत्र १५ रातदिन परिसमाप्त करता है तथा विशाखा नक्षत्र १ रातदिन परिसमाप्त करता है । ( १४+१५+ १ = ३० दिनरात = १ मास) ।
उस मास में सूर्य आठ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है ।
उस महीने के अन्तिम दिन आठ अंगुल अधिक तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है । भगवन् ! ग्रीष्मकाल के तीसरे - ज्येष्ठ मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! उसे चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं - १. विशाखा, २. अनुराधा, ३. ज्येष्ठा तथा मूल ।
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विशाखा नक्षत्र १४ रातदिन परिसमाप्त करता है, अनुराधा नक्षत्र ८ रातदिन परिसमाप्त करता है तथा ज्येष्ठा नक्षत्र ७ रातदिन परिसमाप्त करता है तथा मूल नक्षत्र १ रातदिन परिसमाप्त करता है । (१४+८+७+१=३० दिनरात १ मास) ।
उस मास में सूर्य चार अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है ।
उस महीने के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है।
भगवन् ! ग्रीष्मकाल के चौथे - आषाढ मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! उसे तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं - १. मूल, २. पूर्वाषाढा तथा ३. उत्तराषाढा ।
मूल नक्षत्र १४ रातदिन परिसमाप्त करता है, पूर्वाषाढा नक्षत्र १५ रातदिन परिसमाप्त करता है तथा उत्तराषाढा नक्षत्र १ रातदिन परिसमाप्त करता है । (१४+१५+ १ = ३० रातदिन
=
१ मास) ।
सूर्य वृत्त - वर्तुल - गोलाकार, समचौरस, संस्थानयुक्त, न्यग्रोधपरिमण्डल - बरगद के वृक्ष की ज्यों ऊपर से संपूर्णतः विस्तीर्ण, नीचे से संकीर्ण, प्रकाश्य वस्तु के कलेवर के सदृश आकृतिमय छाया से युक्त अनुपर्यटन करता है।
उस महीने के अन्तिम दिन परिपूर्ण दो पद पुरुषछायाप्रमाण पोरसी होती है ।