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________________ पञ्चम वक्षस्कार] [२९३ आगे का वर्णन पूर्ववत् है। ___ वे भगवान् तीर्थंकर की माता को सम्बोधित कर कहती हैं-आप भयभीत न हो। यों कह कर वे हाथों में तालवृन्त-व्यजन-पंखे लिये हुए आगान, परिगान करती हैं। उस काल, उस समय उत्तर रुचककूट-निवासिनी आठ महत्तरा दिक्कुमारिकाएँ सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. अलंबुसा, २. मिश्रकेशी, ३. पुण्डरीका, ४. वारुणी, ५. हासा, ६. सर्वप्रभा, ७. श्री तथा ८. ह्री। शेष समग्र वर्णन पूर्ववत् है। वे भगवन् तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ के लिये आगानपरिगान करती हैं। उस काल, उस समय रुचककूट के मस्तक पर-शिखर पर चारों विदिशाओं में निवास करने वाली चार महत्तरिका दिक्कुमारिकाएँ सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. चित्रा, २. चित्रकनका, ३. श्वेता तथा ४. सौदामिनी। आगे का वर्णन पूर्वानुरूप है। वे आकर भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं-'आप डरें नहीं।' यों कहकर भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता के चारों विदिशाओं में अपने हाथों में दीपक लिये आगानपरिगान करती हैं। उस काल, उस समय मध्य रुचककूट पर निवास करनेवाली चार महत्तरिका दिक्कुमारिकाएँ सुखोपभोग करती हुई अपने-अपने कूटों पर विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. रूपा, २. रूपासिका, ३. सुरूपा तथा ४. रूपकावती। ___ आगे का वर्णन पूर्ववत् है। वे उपस्थित होकर भगवान् तीर्थंकर की माता को सम्बोधित कर कहती है-'आप डरें नहीं।' इस प्रकार कहकर वे भगवान् तीर्थंकर के नाभि-नाल को चार अंगुल छोड़कर काटती हैं। नाभि-नाल को काटकर जमीन में गड्ढा खोदती हैं। नाभि-नाल को उसमें गाड़ देती हैं और उस गड्ढे को वे रत्नों से, हीरों से भर देती हैं। गड्डा भरकर मिट्टी जमा देती हैं, उस पर हरी-हरी दूब उगा देती हैं। ऐसा करके उसकी तीन दिशाओं में तीन कदलीगृह केले के वृक्षों से निष्पन्न घरों की विकुर्वणा करती हैं. उन कदली-गृहों के बीच में तीन चतुः शालाओं-जिन में चारों ओर मकान हों, ऐसे भवनों की विकुर्वणा करती हैं। उन भवनों के बीचोंबीच तीन सिंहासनों की विकुर्वणा करती हैं। सिंहासनों का वर्णन पूर्ववत् है। ___फिर वे मध्यरुचकवासिनी महत्तरा दिक्कुमारिकाएँ भगवान् तीर्थंकर तथा उसकी माता के पास आती हैं। तीर्थंकर को अपनी हथेलियों के संपुट द्वारा उठाती हैं और तीर्थंकर की माता को भुजाओं द्वारा उठाती हैं । ऐसा कर दक्षिणदिग्वर्ती कदलीगृह में जहाँ चतुःशाल भवन पर सिंहासन बनाए गए थे, वहाँ आती हैं। भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता को सिंहासन पर बिठाती हैं। सिंहासन पर बिठाकर उनके शरीर पर शतपाक .
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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