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________________ २९२ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अपने-अपने कूटों पर सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं १. नन्दोत्तरा, २. नन्दा, ३. आनन्दा, ४. नन्दिवर्धना, ५ . विजया, ६. वैजयन्ती, ७. जयन्ती तथा ८. अपराजिता । अवशिष्ट वर्णन पूर्ववत् है। (वे तीर्थंकर की माता के निकट आती है एवं हाथ जोड़े, अंजलि बाँधे, उन्हें मस्तक पर घुमाकर तीर्थंकर की माता से कहती हैं 'रत्मकुक्षिधारिके - अपनी कोख में तीर्थंकररूप रत्न को धारण करने वाली ! जगत्प्रदीपदायिके - जगद्वर्ती जनों को सर्वभाव प्रकाशक तीर्थंकररूप दीपक प्रदान करने वाली ! हम आपको नमस्कार करती है। समस्त जगत के लिए मंगलमय, नेत्रस्वरूप - सकल - जगद्भावदर्शक, मूर्त - चक्षुर्ग्राह्य, समस्त जगत् के प्राणियों के लिए वात्सल्यमय, हितप्रद सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप मार्ग उपदिष्ट करने वाली, विभुसर्वव्यापक—समस्त श्रोतृवृन्द के हृदयों में तत्तद्भाषानुपरिणत हो अपने तात्पर्य का समावेश करने में समर्थ वाणी की ऋद्धि-वाग्वैभव से युक्त जिन-राग-द्वेष विजेता, ज्ञानी - सातिशय ज्ञानयुक्त, नायक, धर्मवरचक्रवर्तीउत्तम धर्मचक्र का प्रवर्तन करने वाले, बुद्ध - ज्ञाततत्त्व, बोधक-दूसरों को तत्त्वबोध देने वाले, समस्त लोक नाथ - समस्त प्राणिवर्ग में ज्ञान - बीज का आधान एवं संरक्षण कर उनके योग- क्षेमकारी, निर्मम - ममतारहित, उत्तम क्षत्रिय - कुल में उद्भूत, लोकोत्तम - लोक में सर्वश्रेष्ठ तीर्थंकर भगवान् की आप जननी हैं। आप धन्य हैं, पुण्यशालिनी हैं एवं कृतार्थ - कृतकृत्य हैं ।) देवानुप्रिये ! पूर्वदिशावर्ती रुचककूट निवासिनी हम आठ प्रमुख दिशाकुमारिकाएँ भगवान् तीर्थंकर का जन्म - महोत्सव मनायेंगी । अतः आप भयभीत मत होना।' यों कहकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के शृंगार, शोभा, सज्जा आदि विलोकन में उपयोगी, प्रयोजनीय दर्पण हाथ में लिये वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता के पूर्व में आगान, परिगान करने लगती हैं । उस काल, उस समय दक्षिण रुचककूट- निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएँ अपने-अपने कूटों में सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. समाहारा, २. सुप्रदाता, ३. सुप्रबुद्धा, ४. यशोधरा, ५. लक्ष्मीवती, ६. शेषवती, ७. चित्रगुप्ता तथा ८. वसुन्धरा। आगे का वर्णन पूर्वानुरूप है । वे भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं- 'आप भयभीत न हों।' यों कहकर वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता के स्नपन में प्रयोजनीय सजल कलश हाथ में लिए दक्षिण मे आगान, पारिगान करने लगती है । . उस काल, उस समय पश्चिम रुचक- कूट - निवासिनी आठ महत्तरा दिक्कुमारिकाएँ सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं १. इलादेवी, २. सुरादेवी, ३. पृथिवी, ४. पद्मावती, ५. एकनासा, ६. नवमिका, ७. भद्रा तथा ८ सीता ।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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