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________________ २८२] . [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र उस पर पुण्डरीक नामक द्रह है। उसके दक्षिण तोरण से सुवर्णकूला नामक महानदी निकलती है। वह रोहितांशा की ज्यों पूर्वी लवणसमुद्र में मिलती है। यहाँ रक्ता तथा रक्तवती का वर्णन भी वैसा ही समझना चाहिए जैसा गंगा तथा सिन्धु का है। रक्ता महानदी पूर्व में तथा रक्तवती पश्चिम में बहती है। (अवशिष्ट वर्णन गंगा-सिन्धु की ज्यों है।) भगवन् ! शिखरी वर्षधर पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उसके ग्यारह कूट बतलाये गये हैं-१. सिद्धायतन कूट, २. शिखरी कूट, ३. हैरण्यवतकूट, ४. सुवर्णकूलाकूट, ५. सुरादेवीकूट, ६. रक्ताकूट, ७. लक्ष्मीकूट, ८. रक्तावतीकूट, ९. ईलादेवीकूट, १०. ऐरावतकूट, ११. तिगिच्छकूट। ये सभी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊँचे हैं। इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियां उत्तर में हैं। भगवन् ! यह पर्वत शिखरी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! शिखरी वर्षधर पर्वत पर बहुत से कूट उसी के-से आकार में अवस्थित हैं, सर्वरत्नमय हैं। वहाँ शिखरी नामक देव निवास करता है, इस कारण वह शिखरी वर्षधर पर्वत कहा जाता है। . ऐरावतवर्ष १४४. कहि णं भंते ! जम्बूद्दीवे दीवे एरावए णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! सिहरिस्स उत्तरेणं, उत्तरलवणसमुद्दस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे एरावए णामं वासे पण्णत्ते। खाणुबहुले, कंटकबहुले एवं जच्चेव भरहस्स वत्तव्वया सच्चेव सव्वा निरवसेसा णेअव्वा।सओअवणा, सणिक्खिमणा, सपरिनिव्वाणा।णवरं एरावओ चक्कवट्टी, एरावओ देवो, से तेणटेणं एरावए वासे २। [१४४] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत ऐरावत नामक क्षेत्र कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! शिखरी वर्षधर पर्वत के उत्तर में, उत्तरी लवणसमुद्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत ऐरावत नामक क्षेत्र बतलाया गया है। वह स्थाणुबहुल है-शुष्क काठ की बहुलता से युक्त है, कंटकबहुल है, इत्यादि उसका सारा वर्णन भरतक्षेत्र की ज्यों वह षटखण्ड साधन, निष्क्रमण-प्रव्रज्या या दीक्षा तथा परिनिर्वाण-मोक्ष सहित है-ये वहाँ साध्य हैं। इतना अन्तर है-वहाँ ऐरावत नामक चक्रवर्ती होता है, ऐरावत नामक अधिष्ठातृ-देव है, इस कारण वह ऐसवत क्षेत्र कहा जाता है।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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