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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [२८१ कारणों से वह माल्यवत्पर्याय वृत्त वैताढ्य कहा जाता है। राजधानी उत्तर में है। __ भगवन् ! हैरण्यवत क्षेत्र इस नाम से किस कारण कहा जाता है ? गौतम ! हैरण्यवत क्षेत्र रुक्मी तथा शिखरी नामक वर्षधर पर्वतों से दो ओर से घिरा हुआ है। वह नित्य हिरण्य-स्वर्ण देता है, नित्य स्वर्ण छोड़ता है, नित्य स्वर्ण प्रकाशित करता है, जो स्वर्णमय शिलापट्टक आदि के रूप में वहाँ यौगलिक मनुष्यों के शय्या, आसन आदि उपकरणों के रूप में उपयोग में आता है, वहाँ हैरण्यवत नामक देव निवास करता है, इसलिए वह हैरण्यवत क्षेत्र कहा जाता है। शिखरी वर्षधर पर्वत १४३. कहि णं भंते ! जम्बुद्दीवे दीवे सिहरी णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं, एरावयस्स दाहिणेणं, पुरथिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं, एवं जह चेव चुल्लहिमवन्तो तह चेव सिहरीवि, णवरं जीवा दाहिणेणं, धणुं उत्तरेणं, अवसिटुं तं चेव। पुण्डरीए दहे, सुवण्णकूला महाणई दाहिणेणं णेअव्वा जहा रोहिअंसा पुरथिमेणं गच्छइ, एवं जह चेव गंगासिंधूओ तह चेव रत्तारत्तवईओ णेअव्वाओ पुरत्थिमेणं रत्ता पच्चत्थिमेण रत्तवई, अवसिटुं तं चेव [अवसेसं भाणिअव्वंति ]। __सिहरिम्मि णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! इक्कारस कूडा पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धाययणकूडे १, सिहरिकूडे २, हेरण्णवयकूडे ३, सुवण्णकूलाकूडे ४, सूरादेवीकूडे ५, रत्ताकूडे ६, लच्छीकूडे ७, रत्तवईकूडे ८, इलादेवी कूडे ९, एरवयकूडे १०, तिगिच्छिकूडे ११। एवं सव्वेवि कूडा पंचसइआ, रायहाणीओ उत्तरेणं। से केणटेणं भन्ते ! एवमुच्चइ सिहरिवासहरपव्वए २ ? गोयमा ! सिहरिमि वासहरपव्वए बहवे कूडा सिहरिसंठाणसंठिआ सव्वरयणामय सिहरी अ इत्थ देवे जाव ' परिवसइ, से तेणढे०। - [१४३] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत शिखरी नामक वर्षधर पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! हैरण्यवत के उत्तर में, ऐरावत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में शिखरी नामक वर्षधर पर्वत बतलाया गया है। वह चुल्ल हिमवान् के सदृश है। इतना अन्तर है-उसकी जीवा दक्षिण में है। उसका धनुपृष्ठभाग उत्तर में है बाकी का वर्णन पूर्ववर्णित चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के अनुरूप है। १. देखें सूत्र संख्या १४
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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