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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [२६७ कहि णं भंते ! णंदणवणे णंदणवणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मन्दरस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लसिद्धाययणस्स उत्तरेणं, उत्तरपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसयस्स दक्खिणेणं, एत्थ णं णंदणवणे णंदणवणे णामं कूडे पण्णत्ते। पञ्चसइआ कूडा पुव्वण्णिा भाणिअव्वा। देवी मेहंकरा, रायहाणी विदिसाएत्ति १। एआहिं चेव पुव्वाभिलावेणं णेअव्वा इमे कूडा। इमाहिं दिसाहिं पुरथिमिल्लस्स भवणस्स दाहिणेणं, दाहिणपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं, मन्दरे कूडे मेहवई रायहाणी पुव्वेणं २। ___ दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं, दाहिणपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं णिसहे कूडे सुमेहा देवी, रायहाणी दक्खिणेणं ३। दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं दक्खिणपच्चस्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरस्थिमेणं हेमवए कूडे हेममालिनी देवी, रायहाणी दक्खिणेणं ४। पच्चथिमिल्लस्स भवणस्स दक्खिणेणं दाहिण-पच्चथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं श्ययकूडे सुवच्छा देवी, रायहाणी पच्चत्थिमेणं ५। पच्चस्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं , उत्तर-पच्चस्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं रुअगे कूडे वच्छमित्ता देवी, रायहाणी पच्चत्थिमेणं ६। - उत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, उत्तर-पच्चथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं सागरचित्ते कूडे वइरसेणा देवी, रायहाणी उत्तरेणं ७। उत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं, उत्तर-पुरथिमिल्लस्स पासायवडे सगस्स पच्चत्थिमेणं वइरकूडे बलाहया देवी, रायहाणी उत्तरेणंति ८। कहि णं भंते ! णंदणवणे बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मन्दरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं णंदणवणे बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते। एवं जं चेव हरिस्सहकूडस्स पमाणं रायहाणी अतं चेव बलकूडस्सवि, णवरं बलो देवो, रायहाणी उत्तरपुरस्थिमेणंति। [१३३] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर नन्दनवन नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! भद्रशालवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से पांच सौ योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत पर नन्दनवन नामक वन आता है। चक्रवालविषकम्भ-सममण्डलविस्तार–परिधि के सब ओर से समान विस्तर की अपेक्षा से वह ५०० योजन है, गोल है। उसका आकार वलय-कंकण के सदृश है, सघन नहीं है, मध्य में वलय की ज्यों शुषिर है-रिक्त (खाली) है। वह (नन्दनवन) मन्दर पर्वतों को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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