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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
नन्दनवन के बाहर मेरु पर्वत का विस्तार ९९५४), योजन है। नन्दनवन से बाहर उसकी परिधि कुछ अधिक ३१४७९ योजन है। नन्दन वन के भीतर उसका विस्तार ८९४४), योजन है। उसकी परिधि २८३१६/..योजन है। वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से परिवेष्टित है। वहाँ देव-देवियां आश्रय लेते हैं-इत्यादि सारा वर्णन पूर्वानुरूप है।
मन्दर पर्वत के पूर्व में एक विशाल सिद्धायतन है। ऐसे चारों दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं। विदिशाओं में-ईशान, आग्नेय आदि कोणों में पुष्करिणियां हैं, सिद्धायतन, पुष्करिणियां तथा उत्तम प्रासाद तथा शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र-संबंधी वर्णन पूर्ववत् है।
भगवन् ! नन्दनवन में कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! वहाँ नौ कूट बतलाये गये हैं
१. नन्दनवनकूट, २. मन्दरकूट, ३. निषधकूट, ४. हिमवत्कूट, ५. रजतकूट, ६. रुचककूट, ७. सागरचित्रकूट, ८. वज्रकूट तथा ९. बलकूट।
भगवन् ! नन्दनवन में नन्दनवनकूट नामक कूट कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! मन्दर पर्वत पर पूर्व दिशावर्ती सिद्धायतन के उत्तर में, उत्तर-पूर्व-ईशान कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में नन्दनवन में नन्दनवनकूट नामक कूट बतलाया गया है। सभी कूट ५०० योजन ऊँचे हैं। इनका विस्तृत वर्णन पूर्ववत् है।
___नन्दनवनकूट पर मेघंकरा नामक देवी निवास करती है। उसकी राजधानी उत्तर-पूर्व विदिशा मेंईशानकोण में है। और वर्णन पूर्वानुरूप है।
इन दिशाओं के अन्तर्गत पूर्व दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, दक्षिण-पूर्व-आग्नेय कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में मन्दरकूट पर पूर्व में मेघवती नामक राजधानी है। दक्षिण दिशावर्ती भवन के पूर्व में, दक्षिणपूर्व-आग्नेयकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में निषधकूट पर सुमेधा नामक देवी है। दक्षिण में उसकी राजधानी है।'
दक्षिण दिशावर्ती भवन के पश्चिम में, दक्षिण-पश्चिम-नैर्ऋत्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में हैमवतकूट पर हेममालिनी नामक देवी है। उसकी राजधानी दक्षिण में है।
पश्चिम दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, दक्षिण-पश्चिम-नैर्ऋत्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में रजतकूट पर सुवत्सा नामक देवी रहती है। पश्चिम में उसकी राजधानी है।
पश्चिमदिग्वर्ती भवन के उत्तर में, उत्तर-पश्चिम-वायव्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में रुचक नामक कूट पर वत्समित्रा नामक देवी निवास करती है। पश्चिम में उसकी राजधानी है।
उत्तरदिग्वर्ती भवन के पश्चिम में, उत्तर-पश्चिम-वायव्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में सागरचित्र नामक कूट पर वज्रसेना नामक देवी निवास करती है। उत्तर में उसकी राजधानी है।