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________________ २६६] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में मन्दर पर्वत के पद्मोत्तर, नीलवान्, सुहस्ती, अंजनगिरि, कुमुद, पलाश, अवतंस तथा रोचनागिरि-इन आठ दिग्हस्तिकूटों का उल्लेख हुआ है। हाथी के आकार के ये फूट-शिखर भिन्न-भिन्न दिशाओं एवं विदिशाओं में संस्थित हैं। इन कूटों की चर्चा के प्रसंग में पद्मोत्तर, नीलवान्, सुहस्ती तथा अंजनगिरि को दिशा-हस्तिकूट कहा गया है और कुमुद, पलाश एवं अवतंस को विदिशा-हस्तिकूट कहा गया है। आशय स्पष्ट है, पहले चार, जैसा सूत्र में वर्णन है, भिन्न-भिन्न दिशाओं में विद्यमान हैं तथा अगले तीन विदिशाओं में विद्यमान हैं। अन्तिम आठवें कूट रोचनागिरि के लिए दिशाहस्तिकूट शब्द आता है, जो संशय उत्पन्न करता है। आठ कूट अलग-अलग चार दिशाओं में तथा चार विदिशाओं में हों, यह संभाव्य है। रोचनागिरि के दिशाहस्तिकूट के रूप में लिये जाने से दिशा-हस्तिकूट पांच होंगे तथा विदिशाहस्तिकूट तीन होंगे। ऐसा संगत प्रतीत नहीं होता। आगमोदय समिति के, पूज्य श्री अमोलकऋषिजी महाराज के तथा पूज्य श्री घासीलाल जी महाराज के जम्बूद्वीपप्रत्रप्तिसूत्र के संस्करणों के पाठ में तथा अर्थ में रोचनागिरि का दिशाहस्तिकूट के रूप में ही उल्लेख हुआ है। यह विचारणीय एवं गवेषणीय है। नन्दनवन १३३. कहि णं भंते ! मन्दरे पव्वए णंदणवणे णामं वणे पण्णत्ते? गोयमा ! भद्दसालवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पञ्चजोअणसयाई उद्धं उप्पइत्ता एत्थ णं मन्दरे पव्वए णंदणवणे णामं वणे पण्णत्ते। पञ्चजोअणसयाइं चक्कवालविक्खम्भेणं, वट्टे , वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मन्दरं पव्वयं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ त्ति। णवजोअणसहस्साइंणव य चउप्पण्णे जोअणसए छच्चेगारसभाए जोअणस्स बाहिं गिरिविक्खम्भो, एगत्तीसं जोअणसहस्साइं चत्तारि अ अउणासीए जोअणसए किंचि विसेसाहिए बाहिं गिरिपरिरएणं, अट्ठ जोअणसहस्साइं णव य चउप्पण्णे जोअणसए छच्चेगारसभाए जोअणस्स अंतो गिरिविक्खम्भो, अट्ठावीसं जोअणसहस्साइं तिण्णि य सोलसुत्तरे जोअणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोअणस्स अंतो गिरिपरिरएणं। से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ते वण्णओ जाव आसयन्ति। ___मन्दरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते। एवं चउद्दिसिं चत्तारि सिद्धाययणा, विदिसासु पुक्खरिणीओ, तं चेव पमाणं सिद्धाययणाणं पुक्खरिणीणं च पासायवडिंसगा तह चेव सक्केसाणाणं तेणं चेव पमाणेणं। ___णंदणवणे णं भंते ! कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा–णंदणवणकूडे १, मन्दरकूडे २, णिसहकूडे ३, हिमवयकूडे ४, रययकूडे ५, रुअगकूडे ६, सागरचित्तकूडे ७, वइरकूडे ८, बलकूडे ९।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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