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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
है, नाग वक्षस्कार पर्वत है। सुवल्गु विजय है, खड्गपुरी राजधानी है, गम्भीरमालिनी अन्तरनदी है। गन्धिल विजय है, अवध्या राजधानी है, देव वक्षस्कार पर्वत है। गन्धिलावती विजय है, अयोध्या राजधानी है।
इसी प्रकार मन्दर पर्वत के दक्षिणी पार्श्व का-भाग का कथन कर लेना चाहिए। वह वैसा ही है। वहाँ शीतोदा नदी के दक्षिणी तट पर ये विजय हैं
१. पक्ष्म, २. सुपक्ष्म, ३. महापक्ष्म, ४. पक्ष्मकावती, ५. शंख, ६. कुमुद, ७. नलिन तथा ८. नलिनावती। राजधानियां इस प्रकार हैं
१. अश्वपुरी, २. सिंहपुरी, ३. महापुरी, ४. विजयपुरी, ५. अपराजिता, ६. अरजा, ७. अशोका तथा ८. वीतशोका।
वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं१. अंक, २. पक्ष्म, ३. आशीविष तथा ४. सुखावह।
इस क्रमानुरूप कूट सदृश नामयुक्त दो-दो विजय, दिशा-विदिशाएँ, शीतोदा का दक्षिणवर्ती मुखवन तथा उत्तरवर्ती मुखवन-ये सब समझ लिये जाने चाहिए।
शीतोदा के उत्तरी पार्श्व में ये विजय हैं
१. वप्र, २. सुवप्र, ३. महावप्र, ४. वप्रकावती (वप्रावती), ५. वल्गु, ६. सुवल्गु, ७. गन्धिल तथा ८. गन्धिलावती।
राजधानियां इस प्रकार हैं
१. विजया, २. वैजयन्ती, ३. जयन्ती, ४. अपराजिता, ५. चक्रपुरी, ६. खड्गपुरी, ७. अवध्या तथा ८. अयोध्या।
वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं१. चन्द्र पर्वत, २. सूर पर्वत, ३. नाग पर्वत तथा ४. देव पर्वत। क्षीरोदा तथा शीतस्रोता नामक नदियां शीतोदा महानदी के दक्षिणी तट पर अन्तरवाहिनी नदियां हैं।
ऊर्मिमालिनी, फेनमालिनी तथा गम्भीरमालिनी शीतोदा महानदी के उत्तर दिग्वर्ती विजयों की अन्तरवाहिनी नदियां हैं।
इस क्रम में दो-दो कूट-पर्वत शिखर अपने-अपने विजय के अनुरूप कथनीय हैं। वे अवस्थित -स्थिर हैं, जैसे-सिद्धायतन कूट तथा वक्षस्कार पर्वत-सदृश नामयुक्त कूट। मन्दर पर्वत
१३२. कहि णं भंते ! जम्बुद्दीवे २ महाविदेहे वासे मन्दरे णामं पव्वए पण्णत्ते ?