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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र दूसरा उदाहरण दीवाल का है। चुनी हुई दीवाल में हमें कोई खाली स्थान प्रतीत नहीं होता, पर उसमें हम अनेक खूँटियां, कीलें गाड़ सकते हैं। यदि वास्तव में दीवाल में स्थान खाली नहीं होता तो यह कभी संभव नहीं था। दीवाल में स्थान खाली है, मोटे रूप में हमें यह मालूम नहीं पड़ता । २५८ ] क्षेत्रपल्योपम की चर्चा के अन्तर्गत यौगलिक के बालों के खण्डों के बीच-बीच में जो आकाश प्रदेश होने की बात है, उसे इसी दृष्टि से समझा जा सकता है । यौगलिक के बालों के खण्डों को संस्पृष्ट करने वाले आकाश-प्रदेशों में से प्रत्येक को प्रति समय निकालने की कल्पना की जाए। यों निकालते-निकालते जब सभी आकाश-प्रदेश निकाल लिये जाएँ, कुआ बिलकुल खाली हो जाए, वैसा होने में जितना काल लगे, उसे क्षेत्रपल्योपम कहा जाता है । इसका काल-परिमाण असंख्यात उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी है। क्षेत्रपल्योपम भी दो प्रकार का है - व्यावहारिक एवं सूक्ष्म । उपर्युक्त विवेचन व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का है। 1 सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम इस प्रकार है कुए से भरे यौगलिक के केश - खंड़ों से स्पृष्ट तथा अस्पृष्ट सभी आकाश-प्रदेशों में से एक-एक समय में एक-एक प्रदेश निकालने की यदि कल्पना की जाए तथा यों निकलते-निकालते जितने काल में वह कुआ समग्र आकाश-प्रदेशों से रिक्त हो जाए, वह काल - प्रमाण सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम है । इसका भी कालपरिमाण असंख्यात उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी है । व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम से इसका काल असंख्यात गुना अधिक है। है अनुयोगद्वार सूत्र १३८ - १४० तथा प्रवचनसारोद्धार १५८ में पल्योपम का विस्तार से विवेचन है । पक्ष्मादि विजय १३१. एवं पम्हे विजए, अस्सपुरा रायहाणी, अंकावई वक्खारपव्वए १, सुपम्हे विजए, सीहपुरा रायहाणी, खीरोदा महाणई २, महापम्हे विजए, महापुरा रायहणी, पम्हावई वक्खारपव्वए, ३, पम्हगावई विजए, विजयपुरा रायहाणी, सीअसोआ महाणई ४, संखे विजए, अवराइआ रायहाणी, आसीविसे वक्खारपव्वए ५, कुमुदे विजए अरजा रायहाणी अंतोवाहिणी महाणई ६, लि विजए, असोगा रायहाणी, सुहावहे वक्खारपव्वए ७, णलिगावई विजए, वीयसोगा रायहाणी ८, दाहिणिल्ले सीओआमुहवणसंडे, उत्तरिल्ले वि एवमेव भाणिअव्वे जहा सीआए । वप्पे विज, विजया रायहाणी, चन्दे वक्खारपव्वए १, सुवप्पे विजए, वेजयन्ती रायहाणी ओम्मिमालिणी णई २, महावप्पे विजए, जयन्ती रायहाणी, सूरे वक्खारपव्वे ३, वप्पावई विजए, अपराइया रायहाणी, फेणमालिणी णई ४, वग्गू विजए चक्कपुरा रायहाणी, जागे वक्खारपव्वए ५, सुवग्गू विजए, खग्गपुरा रायहाणी, गंभीरमालिणी अंतरणई ६, गन्धिले विजए अवज्झा रायहणी, देवे वक्खारपव्वए ७, गन्धिलावई विजए अओझा रायहाणी ८ । एवं मन्दरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लं पासं भाणिअव्वं, तत्थ ताव सीओआए ईए
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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