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चतुर्थ वक्षस्कार]
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सूक्ष्म उद्धारपल्योपम इस प्रकार है___ व्यावहारिक उद्धारपल्योपम में कुए को भरने के लिए यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों की जो चर्चा आई है, उनमें से प्रत्येक टुकड़े के असंख्यात अदृश्य खंड किये जाएं। उन सूक्ष्म खंडों से पूर्ववर्णित कुआ ढूंस-ठूस कर भरा जाए। वैसा कर लिये जाने पर प्रतिसमय एक-एक केशखण्ड कुए में से निकाला जाए। यों करते-करते जितने काल में वह कुआ बिलकुल खाली हो जाए, उस काल-अवधि को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहा जात है। इसमें संख्यात-वर्ष-कोटी-परिमाण काल माना जाता है।
अद्धापल्योपम-अद्धा देशी शब्द है, जिसका अर्थ काल या समय है। आगम में प्रस्तुत प्रसंग में जो पल्योपम का जिक्र आया है. उसका आशय इसी पल्योपम से है। इसकी गणना का क्रम इस प्रकार है
यौगलिक के बालों के टुकड़ों से भरे हुए कुए में सौ-सौ वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकाला जाए। इस प्रकार निकालते-निकालते जितने में वह कुआ बिलकुल खाली हो जाए, उस कालावधि को अद्धापल्योपम कहा जाता है। इसका परिमाण संख्यात-वर्ष-कोटि है।
• अद्धापल्योपम भी दो प्रकार का होता है-सूक्ष्म और व्यावहारिक। यहाँ जो वर्णन किया गया है, वह व्यावहारिक अद्धापल्योपम का है। जिस प्रकार सूक्ष्म उद्धारपल्योपम में यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों के असंख्यात अदृश्य खंड किये जाने की बात है, तत्सदृश यहाँ भी वैसे ही असंख्यात अदृश्य केशखंडों से वह कुआ भरा जाए। प्रति सौ वर्ष में एक-एक खंड निकाला जाए। यों निकालते निकालते जब कुआ बिलकुल खाली हो जाए, वैसा होने में जितना काल लगे, वह सूक्ष्म अद्धापल्योपम कोटि में आता है। इसका काल-परिमाण असंख्यात वर्ष कोटि माना जाता है।
क्षेत्रपल्योपम-ऊपर जिस कुए या धान के विशाल गड्ढे की चर्चा की गई है, यौगलिक के बालखंडों से उसे उपर्युक्त रूप में दबा-दबा कर भर दिये जाने पर भी उन खंडों के बीच-बीच में आकाशप्रदेश-रिक्त स्थान रह जाते हैं। वे खंड चाहे कितने ही छोटे हों, आखिर वे रूपी या मूर्त हैं, आकाश अरूपी या अमूर्त है। स्थूल रूप में उन खंड़ो के बीच में रहे आकाश-प्रदेशों की कल्पना नहीं की जा सकती पर सूक्ष्मता से सोचने पर वैसा नहीं है। इसे एक स्थूल उदाहरण से समझा जा सकता है
कल्पना करें, अनाज के एक बहुत बड़े कोठे को कूष्माण्डों-कुम्हड़ों से भर दिया जाए। सामान्यतः देखने में लगता है, वह कोठा भरा हुआ है, उसमें कोई स्थान खाली नहीं है, पर यदि उसमें नीबू भरे जाएं तो वे अच्छी तरह समा सकते हैं, क्योंकि सटे हुए कुम्हड़ों के बीच-बीच में नीबूओं के समा सकने जितने स्थान खाली रहते ही हैं। यों नीबूओं से भरे जाने पर भी सूक्ष्म रूप में और खाली स्थान रह जाते हैं, यद्यपि बाहर से वैसा लगता नहीं। यदि उस कोठे में सरसों भरना चाहें तो वे भी समा जायेंगे। सरसों भरने पर भी सूक्ष्म रूप में और स्थान खाली रहते हैं। यदि शुष्क नदी के बारीक रज-कण उसमें भरे जाएं, तो वे भी समा सकते हैं।