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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
भगवन् ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट बतलाये गये है ?
गौतम ! उसके नौ कूट बतलाये गये हैं-१. सिद्धायतनकूट, २. विद्युत्प्रभकूट, ३. देवकुरुकूट, ४. पक्ष्मकूट, ५. कनककूट, ६. सौवत्सिककूट, ७. शीतोदाकूट, ८. शतज्वलकूट, ९. हरिकूट।
हरिकूट के अतिरिक्त सभी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊँचे हैं। इनकी दिशा-विदिशाओं में अवस्थिति इत्यादि सारा वर्णन माल्यवान् जैसा है।
हरिकूट हरिस्सहकूट सदृश है। जैसे दक्षिण में चमरचञ्चा राजधानी है, वैसे ही दक्षिण में इसकी राजधानी है।
कनककूट तथा सौवत्सिककूट में वारिषेणा एवं बलाहका नामक दो देवियां-दिक्कुमारिकाएँ निवास करती हैं। बाकी के कूटों में कूट-सदृश नामयुक्त देव निवास करते हैं। उनकी राजधानियां मेरु के दक्षिण में हैं।
भगवन् ! वह विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत क्यों कहा जाता है।
गौतम ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत विद्युत की ज्यों-बिजली की तरह सब ओर से अवभासित होता है, उद्योतित होता है, प्रभासित होता है-वैसी आभा, उद्योत एवं प्रभा लिये हुए है-बिजली की ज्यों चमकता है। वहाँ पल्योपमपरिमित आयुष्य-स्थिति युक्त विद्युत्प्रभ नामक देव निवास करता है, अत: वह पर्वत विद्युत्प्रभ कहलाता है। अथवा गौतम ! उसका यह नाम नित्य-शाश्वत है।
विवेचन-यहां प्रयुक्त पल्योपम शब्द एक विशेष, अति दीर्घकाल का द्योतक है। जैन वाङ्मयं में इसका बहुलता से प्रयोग हुआ है।
पल्य या पल्ल का अर्थ कुआ या अनाज का बहुत बड़ा गड्ढा है। उसके आधार पर या उसकी उपमा से काल-गणना किये जाने के कारण यह कालावधि पल्योपम कही जाती है।
पल्योपम के तीन भेद हैं-१. उद्धारपल्योपम, २. अद्धापल्योपम तथा ३. क्षेत्रपल्योपम।
उद्धारपल्योपम-कल्पना करें, एक ऐसा अनाज का बड़ा गड्डा या कुआ हो, जो एक योजन (चार कोश) लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा हो। एक दिन से सात दिन तक की आयुवाले नवजात यौगलिक शिशु के बालों के अत्यन्त छोटे-छोटे टुकड़े किये जाएँ, उनसे ढूंस-ठूस कर उस गड्ढे या कुए को अच्छी तरह दबा-दबाकर भरा जाए। भराव इतना सघन हो कि अग्नि उन्हें जला न सके, चक्रवर्ती की सेना उन पर से निकल जाए, तो एक भी कण इधर से उधर न हो, गंगा का प्रवाह बह जाए तो उन पर कुछ असर न हो। यों भरे हुए कूए में से एक-एक समय में एक-एक बालखण्ड निकाला जाए। यों निकालतेनिकालते जितने काल में वह कुआ खाली हो, उस काल परिमाण को उद्धारपल्योपम कहा जात है। उद्धार का अर्थ निकालना है। बालों के उद्धार या निकाले जाने के आधार पर इसकी संज्ञा उद्धारपल्योपम है।
उद्धारपल्योपम के दो भेद हैं-सूक्ष्म एवं व्यावहारिक। उपर्यक्त वर्णन व्यावहारिक उद्धारपल्योपम