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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [२५५ जाता है। अथवा देवकुरु नाम शाश्वत है। विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत १३०. कहिणं भंते ! जम्बुद्दीवे २ महाविदेहे वासे विजुप्पभे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते? गोयमा !णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मन्दरस्स पव्वयस्स दाहिण-पच्चत्थिमेणं. देवकुराए पच्चत्थिमेणं, पम्हस्स विजयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जम्बुद्दीवे २ महाविदेहे वासे विजुप्पभे वक्खारपव्वए पण्णत्ते। उत्तरदाहिणायए एवं जहा मालवन्ते णवरि सव्वतवणिज्जमए अच्छे जाव १ देवा आसयन्ति। विजुप्पभे णं भन्ते ! वक्खारपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा! नवकूडा पण्णत्ता, तंजहा सिद्धाययणकूडे १,विजुप्पभकूडे २, देवकुरुकूडे ३, पम्हकूडे ४, कणगकूडे ५, सोवत्थिकूडे ६, सीओआकूडे ७, सयजलकूडे ८, हरिकूडे ९। सिद्धे अ विजुणामे, देवकुरु पम्हकणगसोवत्थी। सीओया य सयजलहरिकूडे चेव बोद्धव्वे ॥१॥ एए हरिकूडवज्जा पञ्चसइआ णेअव्वा। एएसिं कूडाणं पुच्छा दिसिविदिसाओ णेअव्वाओ जहा मालवन्तस्स। हरिस्सहकूडे तह चेव हरिकूडे रायहाणी जह चेव दाहिणेणं चमरचंचा रायहाणी तह अव्वा, कणगसोवत्थिअकूडेसु वारिसेण-बलाहयाओदो देवियाओ, अवसिढेसु कूडेसु कूडसरिसणामया देवा रायहाणीओ दाहिणेणं। से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-विजुप्पभे वक्खारपव्वए २ ? . गोयमा ! विजुप्पभेणं वक्खारपव्वए विज्जुमिव सव्वओ समन्ता ओभासेइ, उज्जोवेइ, पभासेइ, विज्जुप्पभे य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिइए जाव परिवसइ, से एएणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ विजुप्पभे २, अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे। [१३०] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, मन्दर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में, देवकुरु के पश्चिम में तथा पद्म विजय के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण में लम्बा है। उसका शेष वर्णन माल्यवान् पर्वत जैसा है। इतनी विशेषता हैवह सर्वथा तपनीय-स्वर्णमय है । वह स्वच्छ है-देदीप्यमान है, सुन्दर है। देव-देवियाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं। १. देखें सूत्र संख्या ४ २. देखें सूत्र संख्या १४
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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