SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ ] निषधद्रह [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र १२८. कहि णं भंते! देवकुराए २ णिसढद्दहे णामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसिं चित्तविचित्तकूडाणं पव्वयाणं उत्तरिल्लाओ चरिमन्ताओ अट्ठचोती से जोअणसए चत्तारि अ सत्तभाए जोअणस्स अबाहाए सीओआए महाणईए बहुमज्झदेसभा एत्थ णं णिसह णं दहे पण्णत्ते । एवं जच्चेव नीलवंतउत्तरकुरुचन्देरांवयमालवंताणं वत्तव्वया, सच्चेव णिसहदेवकुरुसूरसुलसविज्जुप्पभाणं णेअव्वा, रायहाणीओ दक्खिणेणंति । [१२८] भगवन् ! देवकुरु में निषध द्रह नामक द्रह कहाँ बतलाया गया ? गौतम ! चित्र-विचित्र कूट नामक पर्वतों के उत्तरी चरमान्त से ८३४, योजन की दूरी पर शीतोदा महानदी के ठीक मध्य भाग में निषध द्रह नामक द्रह बतलाया गया है । नीलवान्, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत तथा माल्यवान् — इन द्रहों की जो वक्तव्यता है, वही निषध, देवकुरु, सूर, सुलस तथा विद्युत्प्रभ नामक द्रहों की समझनी चाहिए। उनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियाँ मेरु के दक्षिण में हैं । कूटशाल्मलीपीठ १२९. कहि णं भंते ! देवकुराए २ कूडसामलिपेढे णामं पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! मन्दरस्स पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पभस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, सीओआए महाणईए पच्चत्थिमेणं देवकुरुपच्चत्थिमद्धस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं देवकुराए कुराए कूडसामलीपेढे णामं पेढे पण्णत्ते । एवं जच्चेव जम्बूए सुदंसणाए वत्तव्वया सच्चेव सामलीए वि भाणिअव्वा णामविहूणा, गरुलदेवे, रायहाणी दक्खिणेणं, अवसिद्धं तं चेव जाव देवकुरु अ । इत्थ देवे पलिओ मट्ठिइए परिवसइ, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ देवकुरा २, अदुत्तर च णं देवकुराए० । [१२९] भगवन् ! देवकुरु में कूटशाल्मलीपीठ - शाल्मली या सेमल वृक्ष के आकार में शिखर रूप पीठ कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में - नैर्ऋत्य कोण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, शीतोदा महानदी के पश्चिम में देवकुरु के पश्चिमार्ध के ठीक बीच में कूटशाल्मलीपीठ नामक पीठ बतलाया गया जम्बू सुदर्शना की जैसी वक्तव्यता है, वैसी ही कूटशाल्मलीपीठ की समझनी चाहिए। जम्बू सुदर्शना के नाम यहाँ नहीं लेने होंगे। गरुड इसका अधिष्ठातृ देव है । राजधानी मेरु के दक्षिण में है। बाकी का वर्णन जम्बू सुदर्शना जैसा है । यहाँ एक पल्योपमस्थितिक देव निवास करता है । अतः गौतम ! यह देवकुरु कहा
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy