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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [२५३ ___ ये सब कूट ५०० योजन ऊँचे हैं। इनका वर्णन गन्धमादन के कूटों के सदृश है। इतना अन्तर हैविमलकूट तथा कंचनकूट पर सुवत्सा एवं वत्समित्रा नामक देवियाँ रहती हैं। बाकी के कूटों पर, कूटों के जो-जो नाम हैं, उन-उन नामों के देव निवास करते हैं। मेरु के दक्षिण में उनकी राजधानियां हैं। देवकुरु १२६. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता ? गोयमा ! मन्दरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, णिसहस्स वासहर-पव्वयस्स उत्तरेणं, विजुप्पहस्स वक्खार-पव्वयस्स पुरथिमेणं, सोमणस-वक्खार-पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता। पाईण-पडीणायया, उदीण-दाहिणवित्थिण्णा। इक्कारस जोअणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोअण-सए दुण्णि अएगूणवीसइभाए जोअणस्स विक्खम्भेणं जहा उत्तरकुराए वत्तव्वया जाव अणुसज्जमाणा पम्हगन्धा, मिअगन्धा, अममा, सहा, तेतली, सणिचारीति ६। [१२६] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में देवकुरु नामक कुरु कहाँ बतलाया गया है ? ‘गौतम ! मन्दर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, सौमनस वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत देवकुरु नामक कुरु बतलाया गया है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। वह ११८४२२/, योजन विस्तीर्ण है। उसका और वर्णन उत्तरकुरु सदृश है। ___ वहाँ पद्मगन्ध-कमलसदृश सुगन्ध युक्त, मृगगन्ध-कस्तूरीमृग सदृश सुगन्धयुक्त, अमम-ममता रहित, सह-कार्यक्षम, तेतली-विशिष्ट पुण्यशाली तथा शनैश्चारी-मन्द गतियुक्त-धीरे-धीरे चलने वाले छह प्रकार के मनुष्य होते हैं, जिनकी वंश-परंपरा-सन्तति-परंपरा उत्तरोत्तर चलती है। चित्र-विचित्र कूट पर्वत १२७. कहि णं भंते ! देवकुराए चित्तविचित्त-कूडा णाम दुवे पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा !णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठचोत्तीसे जोअणसए चत्तारि अ सत्तभाए जोअणस्स अबाहाए सीओआए. महाणईए पुरथिमपच्चत्थिमेणं उभओ कूले एत्थ णं चित्त-विचित्त-कूडा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता। एवं जच्चेव जमगपव्ययाणं सच्चेव, एएसिं रायहाणीओ दक्खिणेणंति। [१२७] भगवन् ! देवकुरु में चित्र-विचित्र कूट नामक दो पर्वत कहाँ बतलाये गये हैं ? गोयमा ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से-अन्तिम छोर से ८३४/ योजन की दूरी पर शीतोदा महीनदी के पूर्व-पश्चिम के अन्तराल में उसके दोनों तटों पर चित्र-विचित्र कूट नामक दो पर्वत बतलाये गये हैं। यमक पर्वतों का जैसा वर्णन है, वैसा ही उनका है। उनके अधिष्ठातृ-देवों की राजधानियाँ मेरु के दक्षिण में हैं।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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