________________
चतुर्थ वक्षस्कार]
[२४७
गौतम ! मंगलावर्त विजय के पूर्व में, पुष्कल विजय के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में पंकावती कुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। उसका प्रमाण, वर्णन ग्राहावती कुण्ड के समान है। उससे पंकावती नामक नदी निकलती है, जो मंगलावर्त विजय तथा पुष्कलावर्त विजय को दो भागों में विभक्त करती हुई आगे बढ़ती है। उसका बाकी वर्णन ग्राहावती की ज्यों है। पुष्कलावर्त विजय
११९. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पुक्खलावत्ते णामं विजए पण्णत्ते?
गोयमा ! णीलवन्तस्स दाहिणेणं, सीआए उत्तरेणं, पंकावईए पुरथिमेणं, एक्कसेलस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थणं पुक्खलावत्तेणामं विजए पण्णत्ते,जहा कच्छविजए तहा भाणिअव्वं जाव पुक्खले अइत्थ देवे महिड्डिए पलिओवमट्टिइए परिवसइ, से एएणद्वेण ।
[११९] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावर्त नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में शीता महानदी के उत्तर में, पंकावती के पूर्व में एकशैल वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुष्कलावर्त नामक विजय बतलाया गया है। इसका वर्णन कच्छ विजय के समान है। यहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्य युक्त पुष्कल नामक देव निवास करता है, इस कारण यह पुष्कलावर्त विजय कहलाता है। एकशैल वक्षस्कार पर्वत.
१२०. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ?
गोयमा ! पुक्खलावत्तचक्कवट्टिविजयस्स पुरत्थिमेणं, पोक्खलावतीचक्कवट्टिविजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सीआए उत्तरेणं, एत्थ णं एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते,चित्तकूडगमेणं अव्वो जाव' देवा आसयन्ति । चत्तारि कूडा, तं जहा-१. सिद्धाययणकूडे, २. एगसेलकूडे, ३. पुक्खलावत्तकूडे, ४. पुक्खलावईकूडे, कूडाणं तं चेव पञ्चसइअं परिमाणं जाव एगसेले अ देवे महिड्डीए।
[१२०] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में एकशैल नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! पुष्कलावर्त-चक्रवर्ति -विजय के पूर्व में, पुष्कलावती-चक्रवर्ति-विजय के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत एकशैल नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है। देव-देवियां वहाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं-तक उसका वर्णन चित्रकूट के सदृश है। उसके चार कूट हैं-१. सिद्धायतनकूट, २. एकशैलकूट, ३. पुष्कलावर्तकूट तथा ४. पुष्कलावतीकूट। ये पाँय सौ योजन ऊँचे हैं।
उस (एकशैल वक्षस्कार पर्वत) पर एकशैल नामक परम ऋद्धिशाली देव निवास करता है।
१. देखें सूत्र संख्या १२