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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
गोयमा ! णीलवन्तस्स दाहिणेणं, सीआए उत्तरेणं, मंगलावइस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, आवत्तस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे णलिणकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणवित्थिण्णे सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव आसयन्ति ।
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कूडे णं भंते! कति कूडा पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा - १. सिद्धाययणकूडे, २. णलिणकूडे, ३. आवत्तकूडे, ४. मंगलावत्तकूडे, एए कूडा पञ्चसइआ, रायहाणीओ उत्तरेणं ।
[११७] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में नलिनकूट नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, मंगलावती विजय के पश्चिम में तथा आवर्त्त विजय के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत नलिनकूट नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है । वह उत्तर - दक्षिण लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। बाकी वर्णन चित्रकूट के सदृश है । .
भगवन् ! नलिनकूट के कितने कूट बतलाये गये हैं ?
गौतम ! उसके चार कूट बतलाये गये हैं - १. सिद्धायतनकूट, २. नलिनकूट, ३. आवर्त्तकूट तथा ४. मंगलावर्तकूट ।
ये कूट पाँच सौ योजन ऊँचे हैं। राजधानियाँ उत्तर में हैं ।
मंगलावर्त विजय
११८. कहि णं भंते! महाविदेहे वासे मंगलावत्ते णामं विजय पण्णत्ते ?
गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सीआए उत्तरेणं, णलिणकूडस्स पुरत्थिमेणं, पंकावईए पच्चत्थिमेणं एत्थ णं मंगलावत्ते णामं विजए पण्णत्ते । जहा कच्छस्स विजए तहा एसो भाणियव्वो जाव मंगलावत्ते अ इत्थ देवे परिवसइ, से एएणट्टेण० ।
कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पंकावई कुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते ?
गोयमा ! मंगलावत्तस्स पुरत्थिमेणं, पुक्खलविजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवन्तस्स दाहिणे णितंबे, एत्थ णं पंकावई (कुंडे णामं ) कुंडे पण्णत्ते । तं चेव गाहावइकुण्डप्पमाणं जाव मंगलावत्तपुक्खलावत्तविजए दुहा विभयमाणी २ अवसेसं तं चेव जं चेव गाहावईए । [११८] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में मंगलावर्त नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, नलिनकूट के पूर्व में, पंकावती के पश्चिम में मंगलावर्त नामक विजय बतलाया गया है। इसका सारा वर्णन कच्छविजय के सदृश है। वहाँ मंगलावर्त नामक देव निवास करता है। इस कारण यह मंगलावर्त कहा जाता है ।
भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र मे पंकावतीकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ बतलाया गया है ?