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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [२४५ गोयमा ! आवत्तस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, कच्छगावईए विजयस्स पुरत्थिमेणं, णीलवन्तस्स दाहिणिल्ले णितंबे एत्थ णं महाविदेहे वासे दहावईकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते। सेसं जहा गाहावईकुण्डस्स जाव अट्ठो। तस्स णं दहावईकुण्डस्स दाहिणेणं तोरणेणं दहावई महाणई पवूढा समाणी कच्छावईआवत्ते विजए दुहा विभयमाणी २ दाहिणेणं सीअं महाणाई समप्पेइ, सेसं जहा गाहावईए। [११५] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में कच्छकावती नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, द्रहावती महानदी के पश्चिम में, पद्मकूट के पूर्व में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत कच्छकावती नामक विजय बतलाया गया है। वह उत्तरदक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। बाकी सारा वर्णन कच्छविजय के सदृश है। यहाँ कच्छकावती नामक देव निवास करता है। भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में द्रहावतीकुण्ड कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! आवर्त विजय के पश्चिम में, कच्छकावती विजय के पूर्व में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत द्रहावतीकुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। बाकी का सारा वर्णन ग्राहावतीकुण्ड की ज्यों है। उस द्रहावतीकुण्ड के दक्षिणी तोरण-द्वार से द्रहावती महानदी निकलती है। वह कच्छावती तथा आवर्त विजय को दो भागों में बांटती हुई आगे बढ़ती है। दक्षिण में शीतोदा महानदी में मिल जाती है। बाकी का सारा वर्णन ग्राहावती की ज्यों है। आवर्त विजय ११६. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे आवत्ते णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीआए महाणईए उत्तरेणं, णलिणकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, दहावतीए महाणईए पुरत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे आवत्ते णामं विजए पण्णत्ते। सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स इति। [११६] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में आवर्त्त नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में तथा द्रहावती महानदी के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत आवर्त्त नामक विजय बतलाया गया है। उसका बाकी सारा वर्णन कच्छविजय की ज्यों है। नलिनकूट वक्षस्कारपर्वत ११७. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे णलिणकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ?
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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