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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] ra [२४३ कहि णं भन्ते ! जम्बूद्दीवे २ महाविदेहे वासे गाहावइकुण्डे पण्णत्ते ? ___गोयमा ! सुकच्छविजयस्स पुरथिमेणं, महाकच्छस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितम्बे एत्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गाहावइकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते, जहेव रोहिअंसाकुण्डे तहेव जाव गाहावइदीवे भवणे। ___ तस्स णं गाहावइस्स कुण्डस्स दाहिणिल्लेणं तोरणेणं गाहावई महाणई पढा समाणी सुकच्छमहाकच्छविजए दुहा विभयमाणी २ अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा दाहिणेणं सीअं महाणइं समप्पेइ। गाहावई णं महाणई पवहे अमुहे असव्वस्थ समा, पणवीसं जोअणसयं विक्खम्भेणं, अद्धाइज्जई जोअणाई उव्वेहेणं, उभओ पासिं दोहिं अ पउमवरवेइआहिं दोहि अ वणसण्डे हिं जाव दुण्हवि वण्णओ इति। । [११२] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में सुकच्छ नामक विजय कहाँ बतलाया गया है ? गौतम! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, ग्राहावती महानदी के पश्चिम में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में सुकच्छ नामक विजय बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है। उसका विस्तार आदि सब वैसा ही है, जैसा कच्छ विजय का है। इतना अन्तर है-क्षेमपुरा उसकी राजधानी है। वहाँ सुकच्छ नामक राजा समुत्पन्न होता है। बाकी सब कच्छ विजय की ज्यों हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में ग्राहावतीकुण्ड कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! सुकच्छविजय के पूर्व में, महाकच्छ विजय के पश्चिम में नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में ग्राहावतीकुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। इसका सारा वर्णन रोहितांशा कुण्ड की ज्यों है. उस ग्राहावतीकुण्ड के दक्षिणी तोरण-द्वार से ग्राहावती नामक महानदी निकलती है। वह सुकच्छ महाकच्छ विजय को दो भागों में विभक्त करती हुई आगे बढ़ती है। उसमें २८००० नदियाँ मिलती हैं। वह उनसे आपूर्ण होकर दक्षिण में शीता महानदी से मिल जाती है। ग्राहावती महानदी उद्गम-स्थान पर, संगमस्थान पर-सर्वत्र एक समान है। वह १२५ योजन चौड़ी है, अढ़ाई योजन जमीन में गहरी है। वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं द्वारा, दो वन-खण्डों द्वारा घिरी है। बाकी का सारा वर्णन पूर्वानुरूप है। महाकच्छ विजय ११३. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजये पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीआए महाणईए उत्तरेणं, पम्हकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, गाहावईए महाणईए पुरत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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