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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा - १. सिद्धाययणकूडे, २. चित्तकूडे, ३. कच्छकूडे, ४. सुकच्छकूडे । समा उत्तरदाहिणेणं परुप्परंति, पढमं सीआए उत्तरेणं, चउत्थए नीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं । एत्थ णं चित्तकूडे णामं देवे महिड्डीए जाव ' रायहाणी सेति । २४२ ] [१११] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में चित्रकूट नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, कच्छविजय के पूर्व में तथा सुकच्छविजय के दक्षिण में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में चित्रकूट नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। वह १६५९२ / योजन लम्बा है ५०० योजन चौड़ा है, नीलवान् वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचा है तथा ४०० कोश जमीन में गहरा है। तत्पश्चात् वह ऊँचाई एवं गहराई में क्रमशः बढ़ता जाता है । शीता महानदी के पास वह ५०० योजन ऊँचा तथा ५०० कोश जमीन में गहरा हो जाता है। उसका आकार घोड़े के कन्धे जैसा है, वह सर्वरत्नमय है, निर्मल, सुकोमल तथा सुन्दर है । वह अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं से तथा दो वनखण्डों से घिरा है। दोनों का वर्णन पूर्वानुरूप है। चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के ऊपर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । वहाँ देव - देवियाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं । भगवन् ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उसके चार कूट बतलाये गये हैं - १. सिद्धायतनकूट (चित्रकूट के दक्षिण में), २. चित्रकूट (सिद्धायतनकूट के उत्तर में ), ३. कच्छकूट (चित्रकूट के उत्तर में) तथा ४. सुकच्छकूट (कच्छकूट के दक्षिण में) । में तथा ये परस्पर उत्तर-दक्षिण में एक समान हैं। पहला सिद्धायतनकूट शीता महानदी के उत्तर चौथा सुकच्छकूट नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में है । चित्रकूट नामक परम ऋद्धिशाली देव वहाँ निवास करता है। राजधानी पर्यन्त सारा वर्णन पूर्ववत् है। सुकच्छ विजय ११२. कहि णं भंते ! जम्बूद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छ णामं विजए पण्णत्ते ? गोया ! सीआए महाणईए, उत्तरेणं, णीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, गाहावईए महाणईए पच्चत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं जम्बूद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे णामं विजय पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए, जहेव कच्छे विजए तहेव सुकच्छे विजए, णवरं खेमपुरा रायहाणी, सुकच्छे राया समुप्पज्जइ तहेव सव्वं । १. देखे सूत्र संख्या १४
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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