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________________ चतुर्थ वक्षस्कार। [२४१ भगवान् ! उत्तरार्ध कच्छविजय में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ऋषभकूट पर्वत के पूर्व में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में उत्तरार्ध कच्छ में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। वह ६० योजन लम्बाचौड़ा है। वह एक वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित हैयहाँ तक का अवशेष वर्णन सिन्धुकुण्ड सदृश है। भगवन् ! वह कच्छविजय क्यों कहा जाता है ? गौतम! कच्छविजय में वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, गंगा महानदी के पश्चिम में, सिन्धु महानदी के पूर्व में दक्षिणार्ध कच्छ विजय के बीचोंबीच उसकी क्षेमा नामक राजधानी बतलाई गई है। उसका वर्णन विनीता राजधानी के सदृश है। क्षेमा राजधानी में कच्छ नामक षटखण्डभोक्ता चक्रवर्ती राज समुत्पन्न होता है-वहाँ लोगों द्वारा उसके लिए कच्छ नाम व्यवहृत किया जाता है. अभिनिष्क्रमण-प्रव्रजन को छोड़कर उसका सारा वर्णन चक्रवर्ती राजा भरत जैसा समझना चाहिए। कच्छविजय में परम समृद्धिशाली, एक पल्योपम आयु-स्थितियुक्त कच्छ नामक देव निवास करता है। गौतम ! इस कारण वह कच्छविजय कहा जाता है। अथवा उसका कच्छविजय नाम नित्य है, शाश्वत चित्रकूट वक्षस्कारपर्वत १११. कहि णं भंते ! जम्बूद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्रकूटे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! सीआए महाणईए उत्तरेणं, णीलवन्तस्स वासहरपव्ययस्स दाहिणेणं कच्छविजयस्स पुरथिमेणं, सुकच्छविजयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णंजम्बूद्दीवे दीवे महाविदेहवासे चित्तकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते। उत्तरदाहिणायए, पाईणपडीणवित्थिण्णे, सोलस-जोअणसहस्साई पञ्च य वाणउए जोअणसए दुण्णि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स आयामेणं, पञ्च जोअणसयाई विक्खम्भेणं, नीलवन्तवासहरपव्ययंतेणं चत्तारिजोअणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउअसयाई उव्वेहेणं। तयणंतरं चणं मायाए २ उस्सेहोव्वेहपरिवुड्डीए परिवड्डमाणे २ सीआमहाणई-अंतेणं पञ्च जोअणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, पञ्च गाउअसयाई उव्वेहेणं, अस्सखन्धसंठाणसंठिए, सव्वरयणामए अच्छे सण्हे जाव' पडिरूवे। उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि अ वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते, वण्णओ दुण्ह वि चित्तकूडस्स णं वक्खारपव्वयस्स उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' आसयन्ति। चित्तकूडे णं भन्ते ! वक्खारपव्वए कति कूडा पण्णत्ता ? १. देखें सूत्र संख्या ४ २. देखें सूत्र संख्या ६
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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