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________________ चतुर्थ वक्षस्कार ] [२२९ काञ्चनक पर्वतों का विस्तार मूल में सौ योजन, मध्य में पचहत्तर योजन, तथा ऊपर पचास योजन है । उनकी परिधि मूल में ३१६ योजन, मध्य में २३७ योजन तथा ऊपर १५८ योजन है । पहला नीलवान्, दूसरा उत्तरकुरु, तीसरा चन्द्र, चौथा ऐरावत तथा पाँचवा माल्यवान् - ये पाँच द्रह हैं। अन्य द्रहों का प्रमाण, वर्णन नीलवान् द्रह के सदृश ग्राह्य है । उनमें एक पल्योपम आयुष्य वाले देव निवास करते हैं। प्रथम नीलवान द्रह में जैसा सूचित किया गया है, नागेन्द्र देव निवास करता है तथा अन्य चार में व्यन्तरेन्द्र देव निवास करते हैं । वे एक पल्योपम आयुष्य वाले हैं। जम्बूपीठ, जम्बूसुदर्शना १०७. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जम्बूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवन्तस्स वासहरपपव्वयस्स दक्खिणेणं, मन्दरस्स उत्तरेणं, मालवन्तस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, सीआए माहणईए पुरत्थिमिल्ले कूले एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जम्बूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते । पञ्च जोअणसयाइं आयाम - विक्खम्भेणं पण्णरस एक्कासीयाइं जोअणसयाइं किंचिविसेसाहिआई परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोअणाई बाहल्लेणं । तयणन्तरं च णं मायाए मायाए पदेसपरिहाणीए पदेसपरिहाणीए सव्वेसु णं चरिमपेरंतेसु दो दो गाउआई बाहल्लेणं, सव्वजम्बुणयामए अच्छे से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडे सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ते, दुण्हंपि वण्णओ । तस्स णं जम्बूपेढस्स चउद्दिसिं एए चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ जाव तोरणाई | तस्स णं जम्बूपेढस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं मणिपेढिआ पण्णत्ता । अट्ठजोअणाई आयाम विक्खम्भेणं, चत्तारि जोअणाई बाहल्लेणं । तीसे णं मणिपेढिआए उप्पिं एत्थ णं जम्बूसुदंसणा पण्णत्ता। अट्ठ जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, अद्धजोअणं उव्वेहेणं । तीसे णं खंधी दो जोअणाई उद्धं उच्च्त्तेणं, अद्धजोअणं बाहल्लेणं । तीसे णं साला छ जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, साइरेगाइं अट्ठ जोअणाई सव्वग्गेणं । तीसे गँ अयमेआरूवे वण्णावासे पण्णत्ते - वइरामया मूला, रययसुपट्ठिअविडिया (विउलखंधा वेरुलियरुइलखंधा, सुजायवरजायरूवपढमगविसालसाला, णाणामणिरयणविविहसाहप्पसाहा, वेरुलियपत्ततवणिज्जपत्तविंटा, जंबूणयरत्तमउयसुकुमालपवालपल्लवंकुरधरा, विचित्तमणिरयणसुरहिकुसुमफलभारनमियसाला, सच्छाया सप्पभा सस्सिरिया सउज्जीया ) अहिअमणणिव्वुइकरी पासाईआ दरिसणिज्जा० । जम्बू सुदंसणा चउद्दिसिं चत्तारि साला पण्णत्ता । तेसि णं सालाणं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं सिद्धाययणे पण्णत्ते । कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खम्भेणं, देसूणगं कोसं उद्धं उच्चत्तेणं, अणेगखम्भसयसण्णिविट्ठे जाव ' दारा पञ्चधणुसयाइं उद्धं उच्चत्तेणं जाव वणमालाओ। १. देखें सूत्र संख्या ६८
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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