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________________ २२८] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र उपपात-उत्पत्ति, संकल्प-शुभ, अध्यवसाय-चिन्तन, अभिषेक-इन्द्रकृत अभिषेक, त्रिभूषणाअलंकारिक सभा में अलंकार-परिधान, व्यवसय-पुस्तक-रत्न का उद्घाटन, अर्चनिका-सिद्धायतन आदि की अर्चा-पूजा, सुधर्मा सभा में गमन, परिवारणा–परिवेष्टना-तत्तद् दिशाओं में देव-परिवारस्थापना, ऋद्धिसम्पत्ति-देव-वैभव-नियोजना आदि यमक देवों का वर्णन-क्रम है। नीलवान् पर्वत से यमक पर्वतों का जितना अन्तर है, उतना ही यमक-द्रहों का अन्य द्रहों से अन्तर है। नीलवान् द्रह १०६. कहि णं भन्ते ! उत्तरकुराए णीलवन्तबहे णामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! जमगाणं दक्खिणिल्लाओ चरिमन्ताओ अट्ठसए चोत्तीसे चत्तारि असत्तभाए जोअणस्स अबाहाए सीआए महाणईए बहुमज्झदेसभाए एत्थणंणीलवन्तबहे णामं दहे पण्णत्ते। दाहिण-उत्तरायए, पाईण-पडीणवित्थिण्णे।जहेव पउमद्दहे तहेव वण्णओणेअव्वो, णाणत्तंदोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते, णीलवन्ते णामं णागकुमारे देवे सेसं तं चेव णेअव्वं। णीलवन्तद्दहस्स पुव्वावरे पासे दस-दस जोअणाइं अबाहाए एत्थ णं वीसं कंचणगपव्वया पण्णत्ता, एगं जोयणसयं उद्धं उच्चत्तेणं मूलंमि जोअणसयं, पण्णत्तरि जोअणाई मज्झंमि। उवरितले कंचणगा, पण्णासं जोअणा हुंति॥१॥ मूलंमि तिण्णि सोले, सत्तत्तीसाइं दुण्णि मझंमि। अट्ठावण्णं च सयं, उवरितले परिरओ होइ॥२॥ · पढमित्थ नीलवन्तो १, बितिओ उत्तरकुरु २ मुणेअव्वो। चंदद्दहोत्थ तइओ ३, एरावय ४, मालवन्तो अ५॥३॥ एवं वण्णओ अट्ठो पमाणं पलिओवमट्ठिइआ देवा। [१०६] भगवन् ! उत्तरकुरु में नीलवान् नामक द्रह कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिणी छोर से ८३४/ योजन के अन्तराल पर शीता महानदी के ठीक बीच में नीलवान् नामक द्रह बतलाया गया है। वह दक्षिण-उत्तर लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। जैसा पद्मद्रह का वर्णन है, वैसा ही उसका है। केवल इतना अन्तर है-नीलवान् द्रह दो पद्मवरवेदिकाओं द्वारा तथा दो वनखण्डों द्वारा परिवेष्टित है। वहाँ नीलवान् नामक नागकुमार देव निवास करता है। अवशेष-वर्णन पूर्वानुरूप नीलवान् द्रह के पूर्वी पश्चिमी पार्श्व में दश-दश योजन के अन्तराल पर बीस काञ्चनक पर्वत हैं। वे सौ योजन ऊँचे हैं।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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