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________________ २१८] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गन्धमायणे णं वक्खारपव्वए कति कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त कूडा, तं जहा-१. सिद्धाययणकूडे, २. गंधमायणकूडे, ३. गंधिलावईकूडे, ४. उत्तरकूडे, ५. फलिहकूडे, ६. लोहियक्खकूडे, ७. आणंदकूडे। कहि णं भंते ! गंधमायणे वक्खारपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधमायणकूडस्स दाहिणपुरस्थिमेणं, एत्थ णं गंधमायणे वक्खारपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते।जं चेव चुल्लहिमवन्ते सिद्धाययणकूडस्स पमाणं तं चेव एएसिं सव्वेसिं भाणिअव्वं । एवं चेव विदिसाहिं तिण्णि कुडा भाणिअव्वा। चउत्थे तइअस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं पञ्चमस्स दाहिणेणं, सेसा उ उत्तरदाहिणेणं। फलिहलोहिअक्खेसु भोगंकरभोगवईओ देवियाओ सेसेसु सरिसणामया देवा। छसु वि पसायवडेंसगा रायहाणीओ विदिसासु। से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ गंधमायणे वक्खारपव्वए गंधमायणे वक्खारपव्वए? गोयमा ! गंधमायणस्स णं वक्खारपव्वयस्स गंधे से जहाणामए कोटपुडाणं वा (तयरपुडाण) पीसिज्जमाणाण वा उक्किरिजमाणाण वा विकिरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण वा ( सहिज्जमाणाण वा) ओराला मणुण्णा (मणामा) गंधा अभिणिस्सवन्ति, भवे एयारूवे ? णो इणढे समढे, गंधमायणस्स णं इतो इद्रुतराए (कंततराए, पियतराए, मणुण्णतराए, मणामताए, मणाभिरामतराए) गंधे पण्णत्ते।से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ गंधमायणे वक्खारपव्वए २।गंधमायणे अइत्थ देवे महिड्डीए परिवसइ, अदुत्तरं च णं सासए णामधिज्जे इति। [१०३] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में गन्धमादन नामक वक्षस्कारपर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दरपर्वत के उत्तर-पश्चिम में-वायव्य कोण में, गन्धिलावती विजय के पूर्व में तथा उत्तरकुरु के पश्चिम में महविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत गन्धमादन नामक वक्षस्कार पर्वत बतलाया गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा और पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। उसकी लम्बाई ३०२०९/ योजन है। वह नीलवान् वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचा है, ४०० कोश जमीन में गहरा है, ५०० योजन चौड़ा है। उसके अनन्तर क्रमशः उसकी ऊँचाई तथा गहराई बढ़ती जाती है, चौड़ाई घटती जाती है। यों वह मन्दर पर्वत के पास ५०० योजन ऊँचा हो जाता है, ५०० कोश गहरा हो जाता है। उसकी चौड़ाई अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी रह जाती है। उसका आकार हाथी के दांत जैसा है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है। वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं द्वारा तथा दो वनखण्डों द्वारा घिरा हुआ है। ___ गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के ऊपर बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है। उसकी चोटियों पर जहाँ तहाँ अनेक देव-देवियाँ निवास करते हैं।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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