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चतुर्थ वक्षस्कार]
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भगवन् ! गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट बतलाया गये हैं ?
गौतम ! उसके सात कूट बतलाये गये हैं-१. सिद्धायतनकूट, २. गन्धमादनकूट, ३. गन्धिलावतीकूट, ४. उत्तरकुरुकूट, ५. स्फटिककूट, ६. लोहिताक्षकूट तथा ७. आनन्दकूट।
भगवान् ! गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! मन्दर पर्वत के उत्तर-पश्चिम में, गन्दमादन कूट के दक्षिण-पूर्व में गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट बतलाया गया है। चुल्लहिमवान् पर्वत पर सिद्धायतन कूट का जो प्रमाण है, वही इन सब कूटों का. प्रमाण है।
तीन कूट विदिशाओं में सिद्धायतनकूट मन्दर पर्वत में वायव्य कोण में-गन्धमादनकूट सिद्धायतनकूट के वायव्य कोण में तथा गन्धिलावतीकूट गन्धमादनकूट के वायव्य कोण में है। चौथा उत्तरकुरुकूट तीसरे गन्धिालवतीकूट के वायव्य कोण में तथा पाँचवें स्फटिककूट के दक्षिण में है। इनके सिवाय बाकी के तीनस्फटिककूट, लोहिताक्षकूट एवं आनन्दकूट उत्तर-दक्षिण श्रेणियों में अवस्थित हैं अर्थात् पाँचवाँ कूट चौथे कूट के उत्तर में छठे कूट के दक्षिण में, छठा कूट पाँचवें कूट के उत्तर में सातवें कूट के दक्षिण में तथा सातवाँ कूट छठे कूट के उत्तर में है, स्वयं दक्षिण में है।
स्फटिककूट तथा लोहिताक्षकूट पर भोगंकरा एवं भोगवती नामक दो दिक्कुमारिकाएँ निवास करती हैं। बाकी के कूटों पर तत्सदृश-कूटानुरूप नाम वाले देव निवास करते हैं। उन कूटों पर तदधिष्ठातृ-देवों के उत्तम प्रासाद हैं, विदिशाओं में राजधानियाँ हैं।
भगवन् ! गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत का यह नाम किस प्रकार पड़ा ?
गौतम ! पीसे हुए, कूटे हुए, बिखरे हुए (एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डाले हुए, उंडेले हुए) कोष्ठ (एवं तगर) से निकलने वाली सुगन्ध के सदृश उत्तम, मनोज्ञ, (मनोरम) सुगन्ध गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत से निकलती रहती है।
भगवान् ! क्या वह सुगन्ध ठीक वैसी है ?
गौतम ! तत्त्वतः वैसी नहीं है। गन्धमादन से जो सुगन्ध निकलती है, वह उससे इष्टतर-अधिक इष्ट (अधिक कान्त, अधिक प्रिय, अधिक मनोज्ञ, अधिक मनस्तुष्टिकर एवं अधिक मनोरम) है। वहाँ गन्धमादन नामक परम ऋद्धिशाली देव निवास करता है। इसलिए वह गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत कहा जाता है। अथवा उसका यह नाम शाश्वत है। उत्तर कुरु
१०४. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णत्ता ?
गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, णीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, गन्धमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, मालवन्तस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ