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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र कथन है( वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त हैमवत नामक देव निवास करता है। गौतम ! इस कारण वह हैमवतक्षेत्र कहा जाता है । २०४ ] महाहिमवान् वर्षधरपर्वत ९६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे २ महाहिमवन्ते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! हरिवासस्स दाहिणेणं, हेमवयस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जम्बूद्दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते । पाईणपडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिण्णे, पलियंकसंठाणसंठिए, दुहा लवणसमुदं पुट्ठे, पुरथिमिल्लाए कोडीए (पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्द) पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे । दो जोअणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, पण्णासं जोअणाई उव्वेहेणं, चत्तारि जोअणसहस्साइं दोण्णि अ दसुत्तरे जोअणसए दस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं णव य जोअणसहस्साइं दोण्णि अ छावत्तरे जोअणसए व गूणवीसभाए जो अणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया, दुहा लवणसमुहं पुट्ठा, पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुहं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए (कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्द) पुट्ठा, तेवण्णं जोअणसहस्साइं नव य एगतीसे जोअणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोअणस्स किंचिविसेसाहिए आयामेणं । तस्स धणुं दाहिणेणं सत्तावण्णं सहस्साइं दोणि अ तेणउए जोअणसए दस य एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं, रुअगसंठाणसंठिए, सव्वरयणामए, अच्छे । उभओ पासिं दोहिं पउमवरवे आहिं दोहि अ वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते । जाव महाहिमवन्तस्स णं वासहरपव्वयस्स उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, णाणाविह पञ्चवणेहिं मणीहि अ तणेहि अ उवसोभिए जाव ' आसयंति सयंति य । १ [९६] भगवन् ! जम्बूद्वीप में महाहिमवान् नामक वर्षधर पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! हरिवर्षक्षेत्र के दक्षिण में, हैमवतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाहिमवान् नामक वर्षधर पर्वत बतलाया गया है। वह पर्वत पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। वह पलंग का सा आकार लिये हुए है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है । अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है और पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। वह दो सौ योजन ऊँचा है, ५० योजन भूमिगत है— जमीन में गहरा गड़ा है। वह ४२१०१, योजन चौड़ा है। उसकी बाहा पूर्व-पश्चिम ९२७६९/१० योजन १. देखें सूत्र संख्या ६ २. देखें सूत्र संख्या १२
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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