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________________ १८८] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र उसकी बांहा-भुजा सदृश प्रदेश पूर्व-पश्चिम ५३५० १५५. योजन लम्बा है। उसकी जीवा धनुष की प्रत्यंचा सदृश प्रदेश पूर्व-पश्चिम लम्बा है। वह (अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है), अपने पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है। वह (जीवा) २४९३२ योजन एवं आधे योजन से कुछ कम लम्बी है। दक्षिण में उसका धनुपृष्ठ भाग परिधि की अपेक्षा से २५२३०१,. योजन बतलाया गया है। वह रुचक-संस्थान-संस्थित है-रुचक संज्ञक आभूषण-विशेष का आकार लिये हुए है, सर्वथा स्वर्णमय है। वह स्वच्छ, सुकोमल तथा सुन्दर है। वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं एवं दो वनखंडों से घिरा हुआ है। उनका वर्णन पूर्वानुरूप है। चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर बहुत समतल और रमणीय भूमिभाग है। वह आर्लिगपुष्करमुरज या ढोलक के ऊपरी चर्मपुट के सदृश समतल है। वहाँ बहुत से वाणव्यन्तर देव तथा देवियाँ विहार करते हैं। पद्मद ९०. तस्स णं बहुसमरमणिज भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए इत्थ णं इक्के महं पउमद्दहे णामं दहे पण्णत्ते। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिण-वित्थिण्णे, इक्कं जोअण-सहस्सं आयामेणं, पंच जोअणसयाई विक्खंभेणं, दस जोअणाई उव्वेहेणं, अच्छे, सण्हे, रययामयकूले (लण्हे, घटे, मट्टे,णीरये, णिप्पंके णिक्कंकडच्छाए, सप्पभे, सस्सिरीए, सउज्जोए,) पासाईए, (दरिसणिज्जे, अभिरूवे,) पडिरूवेत्ति। ___ सेणं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। वेइआवणसंडवण्णओ भाणिअव्वोत्ति। तस्स णं पउमद्दहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। वण्णावासो भाणिअव्वोत्ति। तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेअं पत्तेयं तोरणा पण्णत्ता। ते णं तोरणा णाणामणिमया। तस्स णं पउमद्दहस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थं महं एगे पउमे पण्णत्ते, जोअणं आयामविक्खंभेणं,अद्धजोअणंवाहल्लेणं,दसजोअणाई उव्वेहेणं,दो कोसो ऊसिए जलंताओ।साइरेगाई दसजोअणाइंसव्वग्गेणं पण्णत्ता।सेणं एगाए जगईए सव्वओ समंता संपरिक्खित्तो जम्बूद्दीवजगइप्पमाणा, गवक्खकडएवि तह चेव पमाणेणंति। तस्स णं पउमस्स अयमेवारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामया मूला, रिट्ठामए कंदे, वेरुलिआमए णाले, वेरुलिआमया बाहिरपत्ता, जम्बूणयामया अब्भिंतरपत्ता, तवणिज्जमया, केसरा, णाणामणिमया, पोक्खरस्थिभाया, कणगामई कण्णिगा। सा णं अद्धजोयणं आयामविक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई, अच्छा। तीसे णं कण्णिआए उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामाए आलिंग
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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