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________________ अन्तर्मानस में जम्बूद्वीप से प्रति गहरी आस्था और अप्रतिम सम्मान रहा है। जिसके कारण ही विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश प्रभृति मांगलिक कार्यों के प्रारम्भ में मंगल कलश स्थापना के समय यह मन्त्र दोहराया जाता है जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे......प्रदेशे........नगरे...संवत्सरे...शुभमासे..... वैदिक दृष्टि से जम्बूद्वीप ___ ऋग्वेद में ब्रह्माण्ड के आकार, आयु आदि के सम्बन्ध में स्फुट वर्णन है पर जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में वहाँ चर्चा नहीं हुई हैं । यजुर्वेद, अथर्ववेद, सामवेद, आरण्यक आदि में जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में कुछ उल्लेख मिलते हैं पर जम्बूद्वीप का व्यवस्थित विवेचन वैदिक पुराण-वायुपुराण, विष्णुपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, गरुडपुराण, मत्स्यपुराण, मार्कण्डेयपुराण और अग्निपुराण प्रभृति पुराणों में विस्तार से प्राप्त होता है। श्रीमद्भागवत, रामायण और महाभारत प्रभृति महाकाव्यों में भी जम्बूद्वीप की चर्चा है। वायुपुराण में सम्पूर्ण पृथ्वी को जम्बूद्वीप भद्राश्व, केतमाल, उत्तरकुरु इन चार द्वीपों में विभक्त किया है।' योगदर्शन व्यासभाष्य में लोक की संख्या सात बताई गई है। लिखा हैप्रथम लोक का नाम भूलोक है। भूलोक भी सात द्वीपों में विभक्त है। भूलोक के मध्य में सुमेरु पर्वत है। सुमेरु पर्वत के दक्षिण-पूर्व में जम्बू नाम का वृक्ष है। जिसके कारण लवणसमुद्र से वेष्टित द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा। मेरु से उत्तर की ओर नील, श्वेत,शृंगवान नामक तीन पर्वत हैं। प्रत्येक पर्वत का विस्तार दो-दो हजार योजन है। इन पर्वतों के बीच में रमणक, हिरण्यमय और उत्तर कुरु ये तीन क्षेत्र हैं और सभी का अपना-अपना क्षेत्र विस्तार नौ-नौ योजन है। मेरु से दक्षिण में निषध, हेमकूट और हिम नामक तीन पर्वत है। इन पर्वतों के मध्य में हरिवर्ष, किंपुरुष और भारत ये तीन क्षेत्र है। मेरु के पूर्व में माल्यवान पर्वत है। माल्यवान पर्वत से समुद्र पर्यन्त भद्राश्व नामक क्षेत्र है। मेरु से पश्चिम में गंधमादन पर्वत है। गंधमादन पर्वत से समुद्रपर्यन्त केतुमाल नामक क्षेत्र है। मेरु के अधोभाग में इलावृत्त क्षेत्र है। जिसका विस्तार पचास हजार योजन है। इस प्रकार जम्बूद्वीप के नौ क्षेत्र हैं। जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। __इसी तरह श्रीमद्भागवत २ में भी प्रियव्रत के समय पृथ्वी सात द्वीपों में विभक्त हुई। वे द्वीप थे-१. कुशद्वीप, २. क्रोंचद्वीप, ३. शाकद्वीप, ४. जम्बूद्वीप, ५. लक्षद्वीप, ६. शाल्मलद्वीप, ७. पुष्करद्वीप। कमल पत्र के समान गोलाकार इस जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। इसमें आठ पर्वतों से विभक्त नौ क्षेत्र हैं । जम्बूद्वीप से सीता, अलकनन्दा, चक्षु और भद्रा नामक नदियां चारों दिशाओं से बहती हुई समुद्र में पहुंचती है। विष्णुपुराण में भी जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रोंच, शाक और पुष्कर ये सात द्वीप बतलाये हैं। ये सभी चूड़ी के समान गोलाकार हैं। इन सात द्वीपों के मध्य में जम्बूद्वीप है, जो एक लाख योजन विस्तृत है। इसी तरह गरुडपुराण' और अग्निपुराण ६ में भी सात द्वीपों का उल्लेख है और सभी में यह बताया है कि अन्य छह द्वीप इसे १: २. ३. वायुपुराण, अध्याय ३४ जम्बूद्वीप परिशीलन, अनुपम जैन, प्र. दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, मेरठ श्रीमद्भागवत ५।१।३२-३३ विष्णुपुराण २।२।५ गरुडपुराण १।५४।४ अग्निपुराण १०८।१ ५. ६. [२२]
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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