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________________ है, उसमें मिथिला भी एक है। जातक के अनुसार मिथिला के राजा मखादेव ने अपने सर पर एक पकेबाल को देखा तो उसे संसार की नश्वरता का अनुभव हुआ। वे संसार को छोड़कर त्यागी बने और आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि प्राप्त की। तथागत बुद्ध भी अनेक बार मिथिला पहुंचे थे। उन्होंने वहाँ मखादेव और ब्रह्मायुसुत्तो का प्रवचन दिया था। २ थेरथेरीगाथा के अनुसार वासिट्ठी नामक एक थेरी ने तथागत बुद्ध का उपदेश सुना और बौद्ध धर्म में प्रव्रजित हुए। ३ बौद्ध युग में मिथिला के राजा सुमित्र ने धर्म के अभ्यास में अपने-आपको तल्लीन किया था। मिथिला विज्ञों की जन्मभूमि रही है। मिथिला के तर्कशास्त्री प्रसिद्ध रहे हैं। ईस्वी सन् की नवमी सदी के प्रकाण्ड पण्डित मण्डन मिश्र वहीं के थे। उनकी धर्मपत्नी ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। महान् नैयायिक वाचस्पति मिश्र की यह जन्मभूमि थी। मैथिली कवि विद्यापति यहाँ के राजदरबार में रहते थे। कितने ही विद्वान सीतामढ़ी के पास मुहिला नामक स्थान को प्राचीन मिथिला का अपभ्रंश मानते हैं। ५ जम्बूद्वीप ___गणधर गौतम भगवान् महावीर के प्रधान अन्तेवासी थे। वे महान् जिज्ञासु थे। उनके अन्तर्मानस में यह प्रश्न उबुद्ध हुआ कि जम्बूद्वीप कहाँ है ? कितना बड़ा है ? उसका संस्थान कैसा है ? उसका आकार/स्वरूप कैसा है ? समाधान करते हुए भगवान् महावीर ने कहा-वह सभी द्वीप-समुद्रों में आभ्यन्तर है। वह तिर्यक्लोक के मध्य में स्थित है, सबसे छोटा है, गोल है । अपने गोलाकार में यह एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इसके चारों ओर एक वज्रमय दीवार है। उस दीवार में एक जालीदार गवाक्ष भी है और एक महान् । पद्मवरवेदिका है। पद्मवरवेदिका के बाहर एक विशाल वन-खण्ड है। जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित-ये चार द्वार हैं। जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र कहाँ है ? उसका स्वरूप क्या है ? दक्षिणार्द्ध भरत और उत्तरार्द्ध भरत वैताढ्य नामक पर्वत से किस प्रकार विभक्त हुआ है ? वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? वैताढ्य पर्वत पर विद्याधर श्रेणियाँ किस प्रकार है ? वैताढ्य पर्वत के कितने कूर शिखर हैं ? सिद्धायतन कूट कहाँ है ? दक्षिणार्द्ध भरतकूट कहाँ है ? ऋषभकूट पर्वत कहाँ है ? आदि का विस्तृत वर्णन प्रथम वक्षस्कार में किया गया है। जिज्ञासुगण इसका अध्ययन करें तो उन्हें बहुत कुछ अभिनव सामग्री जानने को मिलेगी। प्रस्तुत आगम में जिन प्रश्नों पर चिन्तन किया गया हैं, उन्हीं पर अंग साहित्य में भी विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। स्थानांग, समवायांग और भगवती में अनेक स्थलों पर विविध दृष्टियों से लिखा गया है। इसी प्रकार परवर्ती श्वेताम्बर साहित्य में भी बहुत ही विस्तार से चर्चा की गई है, तो दिगम्बर परम्परा के तिलोयपण्णत्ति आदि ग्रन्थों में भी विस्तार से निरूपण किया गया है । यह वर्णन केवल जैन परम्परा के ग्रन्थों में ही नहीं, भारत की प्राचीन वैदिक परम्परा और बौद्ध परम्परा के ग्रन्थों में भी इस सम्बन्ध में यत्र - तत्र निरूपण किया गया है। भारतीय मनीषियों के १. जातक । १३७-१३८ मज्झिमनिकाय II.७४ और आगे १३३ ३. थेरथेरी गाथा, प्रकाशक-पालि टेक्सट्स सोसायटी १३६-१३७ ४. बील, रोमांटिक लीजेंड ऑव द शाक्य बुद्ध, पृ.३० ५. दी एन्शियण्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ.७१८ [२१]. .
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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