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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
हस्त्थिरयणे २ एए णं दुवे पंचिंदिअरयणा वेअद्धगिरिपायमूले समुप्पण्णा। सुभद्दा इत्थीरयणे उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पण्णे।
[८५] चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न तथा छत्ररत्न-राजा भरत के ये चार एकेन्द्रिय रत्न आयुधगृहशाला में-शस्त्रागार में उत्पन्न हुए।
चर्मरत्न, मणिरत्न, काकणीरत्न तथा नौ महानिधियां, श्रीगृह में-भाण्डागार में उत्पन्न हुए। सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहितरत्न, ये चार मनुष्यरत्न, विनीता राजधानी में उत्पन्न
हुए।
अश्वरत्न तथा हस्तिरत्न, ये दो पञ्चेन्द्रियरत्न वैताढ्य पर्वत की तलहटी में उत्पन्न हुए।
सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न उत्तर विद्याधर श्रेणी में उत्पन्न हुआ। भरत का राज्य : वैभव : सुख
८६. तएणं से भरहे राया चउदसण्हं रयणाणंणवण्हं महाणिहीणं सोलसण्हं देवसाहस्सीणं बत्तीसाए रायसहस्साणं बत्तीसाए उडुकल्लाणिआसहस्साणं बत्तीसाए जणवयकल्लाणिआसहस्साणं बत्तीसाए बत्तीसइवद्धाणं णाडगसहस्साणं तिण्हं सट्ठीणं सूवयारसयाणं अट्ठारसण्हं सेणिप्पसेणीणं चउरासीइए आससयसहस्साणं चउरासीइए दंतिसयसहस्साणं चउरासीइए रहसयसहस्साणं छण्णउइए मणुस्सकोडीणंबावत्तरीए पुरवरसहस्साणं बत्तीसाए जणवयसहस्साणं छण्णउइए गामकोडीणंणवणउइए दोणमुहसहस्साणं अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं चउव्वीसाए कब्बडसहस्साणं चउव्वीसाए मंडवसहस्साणं वीसाए आगरसहस्साणं सोलसण्हं खेडसहस्साणं चउदसण्हं संवाहसहस्साणं छप्पण्णाए अंतरोदगाणं एगूणपण्णाए विणीआए रायहाणीए चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्सअण्णेसिंच बहूणं राईसरतलवर जाव' सत्थवाहप्पभिईणं आहेवच्चं पोरेवच्चं भट्टित्तं सामित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे ओहयणिहएसु कंटएसु उद्धिअमलिएसु सव्वसत्तुसु णिज्जिएसु भरहाहिवे णरिंदे वरचंदणचच्चिअंगे वरहाररइअवच्छे वरमउडविसिट्ठए वरवत्थभूसणधरे सव्वोउअसुरहिकुसुमवरमल्लोसोभिअसिरे वरणाडगनाडइज्जवरइत्थिगुम्मसद्धिं संपरिवुडे सव्वोसहि सव्वरयणसव्वसमिइसमग्गे संपुण्णमणोरहे हयामित्तमाणमहणे पुव्वकयतवप्पभावनिविट्ठसंचिअफले भुंजइ माणुस्सए सुहे भरहे णामधेज्जेत्ति।
[८६] राजा भरत चौदह रत्नों, नौ महानिधियों, सोलह हजार देवताओं, बत्तीस हजार राजाओं, बत्तीस हजार ऋतुकल्याणिकाओं, बत्तीस हजार जनपदकल्याणिकाओ, बत्तीस-बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्व क्रमोपक्रमों से अनुबद्ध, बत्तीस हजार नाटकों-नाटक-मण्डलियों, तीन सौ साठ सूपकारों, अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि-जनों, चौरासी लाख घोड़ों, चौरासी लाख हाथियों, चौरासी लाख रथों, छियानवै करोड़ मनुष्यों-पदातियों, बहत्तर
१. देखें सूत्र ४४