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तृतीय वक्षस्कार ]
स्वर से) उन्होंने राजा के आदेशानुरूप घोषणा की। घोषणा कर राजा को अवगत कराया ।
विराट राज्याभिषेक-समारोह में अभिषिक्त राजा भरत सिंहासन से उठा । स्त्रीरत्न सुभद्रा, (बत्तीस हजार ऋतुकल्याणिकाओं तथा बत्तीस हजार जनकल्याणिकाओं और बत्तीस-बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्य क्रमोपक्रमों से अनुबद्ध) बत्तीस हजार नाटकों-नाटक मंडलियों से संपरिवृत वह राजा अभिषेक - पीठ से उसके पूर्वी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरा । नीचे उतरकर अभिषेक मण्डप से बाहर निकला। बाहर निकलकर जहाँ आभिषेक्य हस्तिरत्न था । वहाँ आकर अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजराज पर आरूढ हुआ ।
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राजा भरत के अनुगत बत्तीस हजार प्रमुख राजा अभिषेक-पीठ से उसके उत्तरी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे। राजा भरत का सेनापतिरत्न, सार्थवाह आदि अभिषेक-पीठ से उसके दक्षिणी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरे।
आभिषेक्य हस्तिरत्न पर आरूढ राजा के आगे आठ मंगल प्रतीक रवाना किये गये । आगे का वर्णन एतत्सदृश प्रसंग से संग्राह्य है ।
तत्पश्चात् राजा भरत स्नानघर में प्रविष्ट हुआ । स्नानादि परिसंपन्न कर भोजन - मण्डप में आया, सुखासन पर या शुभासन पर बैठा, तेले का पारणा किया। पारणा कर भोजन - मण्डप से निकला । भोजनमण्डप से निकल कर वह अपने श्रेष्ठ उत्तम प्रासाद में गया । वहाँ मृदंग बज रहे थे । (बत्तीस-बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्य क्रमोपक्रमों से नाटक चल रहे थे, नृत्य हो रहे थे। यों नाटककार, नृत्यकार, संगीतकार, राजा का मनोरंजन कर रहे थे, गीतों द्वारा राजा का कीर्ति स्तवन कर रहे थे ।) राजा उनका आनन्द लेता हुआ सांसारिक सुखों का भोग करने लगा ।
प्रमोदोत्सव में बारह वर्ष पूर्ण हो गये । राजा भरत जहाँ स्नानघर था, वहाँ आया । स्नान कर वहाँ से निकला, जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, (जहाँ सिंहासन था, वहाँ आया ।) वहाँ आकर पूर्व की ओर मुँह कर सिंहासन पर बैठा । सिंहासन पर बैठकर सोलह हजार देवों का सत्कार किया, सम्मान किया । उनको सत्कृत, सम्मानित कर वहाँ से विदा किया। बत्तीस हजार प्रमुख राजाओं का, सत्कार-सम्मान किया। सत्कृत, सम्मानित कर उन्हें विदा किया। सेनापतिरत्न, पुरोहितरत्न आदि का, तीन सौ साठ सूपकारों का, अठारह श्रेणी - श्रेणीजनों का, बहुत से माण्डलिक राजाओं, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली पुरुषों, राजसम्मानित विशिष्ट नागरिकों तथा सार्थवाह आदि का सत्कार किया, सम्मान किया। उन्हें सत्कृत, सम्मानित कर विदा किया। विदा कर वह अपने श्रेष्ठ - उत्तम महल में गया । वहाँ विपुल भोग भोगने लगा । चतुर्दश : नवनिधि : उत्पत्तिक्रम
८५. भरहस्स रण्णो चक्करयणे १ दंडरयणे २ असिरयणे ३ छत्तरयणे ४ एते णं चत्तारि एगिंदियरयणं आउहघरसालाए समुप्पणा । चम्मरयणे १ मणिरयणे २ कागणिरयणे ३ णव य महाणिहओ एए णं सिरिघरंसि समुप्पणा । सेणावइरयणे १ गाहावइरयणे २ वद्धारयणे ३ पुरोहिअरयणे ४ एए णं चत्तारि मणुयरयणा विणीआए रायहाणीए समुप्पण्णा । आसरयणे १