________________
तृतीय वक्षस्कार]
[१७१
कर बत्तीस हजार राजाओं का सत्कार किया, सम्मान किया। उन्हें सत्कृत-सम्मानित कर सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहितरत्न का सत्कार किया, सम्मान किया। उनका सत्कार सम्मान कर तीन सौ आठ पाचकों का सत्कार-सम्मान किया, अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि-जनों का सत्कार-सम्मान किया।माण्डलिक राजाओं, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली पुरुषों तथा सार्थवाहों आदि का सत्कार-सम्मान किया। उन्हें सत्कृतसम्मानित कर सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न, बत्तीस हजार ऋतु-कल्यणिकाओं तथा बत्तीस हजार जनपदकल्याणिकाओं, बत्तीस-बत्तीस अभिनेतव्य विधिक्रमों से परिबद्ध बत्तीस हजार नाटकों से-नाटक-मण्डलियों से संपरिवृत राजा भरत कुबेर की ज्यों कैलास पर्वत के शिखर के तुल्य अपने उत्तम प्रासाद में गया। राजा ने अपने मित्रों-सुहज्जनों, निजक-माता, भाई, बहिन आदि स्वजन-पारिवारिक जनों तथा श्वसुर, साले आदि सम्बन्धियों से कुशल-समाचार पूछे। वैसा कर वह जहाँ स्नानघर था, वहाँ गया। स्नान आदि संपन्न कर स्नानघर से बाहर निकला, जहाँ भोजन-मण्डप था, आया। भोजनमण्डप में आकर सुखासन से अथवा शुभ-उत्तम आसन पर बैठा, तेले की तपस्या का पारणा किया। पारणा कर अपने महल में गया। वहाँ मृदंग बज रहे थे। बत्तीस-बत्तीस अभिनेतव्य विधिक्रम से नाटक चल रहे थे, नृत्य हो रहे थे। यों नाटककार, नृत्यकार, संगीतकार राजा का मनोरंजन कर रहे थे। गीतों द्वारा राजा का कीर्ति-स्तवन कर रहे थे। राजा उनका आनन्द लेता हुआ सांसारिक सुख का भोग करने लगा। राज्याभिषेक
८४. तए णं तस्स भरहस्स रणो अण्णया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेआरूवे (अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था)अभिजिएणं मए णिअगबलवीरिअपुरिसक्कारपरकम्मेण चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महया रायाभिसेयणं अभिसेएणं अभिसिंचावित्तएत्ति कटु एवं संपेहेति २त्ता कल्लं पाउप्पभाए ( रयणीय फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मिअह पंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किंसुय -सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-संड-बोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा) जलंते जेणेव मज्जणघरे जाव पडिणिक्खमइ २त्ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीअति, णिसीइत्ता सोलह देवसहस्से बत्तीसरायवरसहस्से सेणावइरयणे (गाहावइरयणे वद्धइरयणे) पुरोहियरयणे तिण्णि सटे सूअसए अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ अण्णे अ बहवे राईसरतलवर जाव' सत्थवाहप्पभिइओ सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-'अभिजिए णंदेवाणुप्पिआ! मए णिअगवलवीरिय-(पुरिसक्कारपरक्कमेण चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेराए) केवलकप्पे भरहे वासे। तं तुब्भे णं देवाणुप्पिआ ! ममं महयारायाभिसेयं विअरह।' तए णं से सोलस देवसहस्सा (बत्तीसं रायवरसहस्सा सेणावइरयणे जाव पुरोहियरयणे तिण्णि सट्टे सूअसए अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ अण्णे अ बहवे राईसरतलवर जाव सत्थवाह-) पभिइओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठकरयलमत्थए अंजलिं कट्ट
१. देखें सूत्र संख्या ४४