SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र रुकावट के दुर्भेद्य वस्तुओं के भेदन में भी समर्थ थी । फिर पशु, मनुष्य आदि जंगम प्राणियों के देह-भेदन की तो बात ही क्या ! वह तलवार पचास अंगुल लम्बी थी, सोलह अंगुल चौड़ी थी । उसकी मोटाई अर्धअंगुल प्रमाण थी। यह उत्तम तलवार का लक्षण है । १४० ] राजा के हाथ से उत्तम तलवार को लेकर सेनापति सुषेण, जहाँ आपात किरात थे, वहाँ आया । वहाँ आकर वह उनसे भिड़ गया- उन पर टूट पड़ा। उसने आपात किरातों में से अनेक प्रबल योद्धाओं को मार डाला, मथ डाला तथा घायल कर डाला। वे आपात किरात एक दिशा से दूसरी दिशा में भाग छूटे। मेघमुख देवों द्वारा उपद्रव ७४. तए णं ते आवाडचिलाया सुसेणसेणावइणा हयमहिआ जाव' पडिसेहिया समाणा भी तथा बहि उव्वग्गा संजायभया अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमिति कट्टु अगाई जोअणाई अवक्कमति २त्ता एगयाओ मिलायंति २त्ता जेणेव सिंधु महाणई तेणेव उवागच्छंति २ त्ता वालुआसंथारए संथरेंति २त्ता वालुआसंथारए दुरुहंत २त्ता अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति २त्ता वालुआसंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्टमभत्ति तेसिं कुलदेवया मेहमुहा णामं णागकुमारा देवा, ते मणसि करेमाणा २ चिट्ठति । तए णं ते सिमावाडचिलायाणं अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि मेहमुहाणं णागकुमाराणं देवाणं आसणाई चलति । मेहमुहणागकुमारा देवा आसणाई चलिआई पासंति २त्ता ओहिं पउंजंति २त्ता आवाsचिलाए ओहिणा आभोएंति २त्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति २त्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिआ ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरद्धभरहे वासे आवाडचिलाया सिंधूए महाणईए वालुआसंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिआ अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसि करेमाणे २ चिट्टंति, तं सेअं खलु देवाणुष्पिआ ! अम्हं आवाड चिलायाण अंतिए पाउब्भवित्तएत्ति क अण्णमण्मस्स अंतिए एअमट्ठे पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरिआए जाव वीतिवयमाणा २ जेणेव जंबुद्दीवे दीवे उत्तरद्धभरहे वासे जेणेव सिंधू महाणई जेणेव आवाड चिलाया तेणेव उवागच्छंति २त्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणिआई पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिआ ते आवाडचिलाए एवं वयासी - हं भो आवाडचिलाया ! जण्णं तुब्भे देवाणुप्पिआ ! वालुआसंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिआ अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसि करेमाणा २चिट्ठह, तए णं अम्हे मेहमुहा णागकुमारा देवा तुब्धं कुलदेवया तुम्हें अंतिअण्णं पाउब्भूआ, तं वदह णं देवाणुप्पिआ ! किं करेमो के व मे मणसाइए ? तए णं ते आवाडचिलाया मेहमुहाणं णागकुमाराणं देवाणं अंतिए एअमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिआ जाव े हिअआ उट्ठाए उट्ठेति २त्ता जेणेव मेहसुहा णागकुमारा देवा तेणेव १. देखें सूत्र संख्या ५७ २. देखें सूत्र संख्या ३४ ३. देखें सूत्र संख्या ४४
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy