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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
कवाडा सुसेणसेणावइणा दंडरयणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो आउडिया समाणा महया २ सद्देणं कोंचारवं करेमाणा, सरसरस्स सगाई २ ठाणाई पच्चोसक्कित्था। तए णं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेइ २त्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ २त्ता (तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेड़, करेत्ता) करयलपरिग्गहिअं(दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट) जएणं विजएणंवद्धावेइ २त्ता एवं वयासी-विहाडिआणंदेवाणुप्पिया! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लँस्स दुवारस्स कवाडा एअण्णं देवाणुप्पिआणं पिअंणिवेएमो पिअं भे भवउ।
तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टचित्तमाणंदिए जाव' हिआए सुसेणं सेणावइं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता कोडुंबिअपुरिसे सद्दावेइ रत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ!आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरहपवर-(जोहकलिआए चाउरंगिणीए सेण्णाए सद्धिं संपरिवुडे महायाभडचडगरपहगरवंदपरिक्खित्ते महया उक्किट्ठिसीहणायबोलकलकलसद्देणं समुद्दरवभूयंपिव करेमाणे) अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवरं णरवई दुरूढे।
[६९] राजा भरत ने सेनापति सुषेण को बुलाया। बुलाकर उससे कहा-देवानुप्रिय ! जाओ, शीघ्र ही तमिस्रा गुफा के दक्षिणी द्वार के दोनों कपाट उद्घाटित करो। वैसा कर मुझे सूचित करो।
राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर सेनापति सुषेण अपने चित्त में हर्षित, परितुष्ट तथा आनन्दित हुआ। उसने अपने दोनों हाथ जोड़े। उन्हें मस्तक से लगाया, मस्तक पर से घुमाया और अंजलि बाँधे ('स्वामी! जैसी आज्ञा' ऐसा कहकर) विनयपूर्वक राजा का वचन स्वीकार किया। वैसा कर राजा भरत के पास से रवाना हुआ। रवाना होकर जहाँ अपना आवासस्थान था, जहाँ पौषधशाला थी वहाँ आया। वहाँ आकर डाभ का बिछौना बिछाया। (डाभ का बिछौना बिछाकर उस पर संस्थित हुआ।) कृतमाल देव को उद्दिष्ट कर तेले की तपस्या अंगीकार की। पौषधशाला में पौषध लिया। ब्रह्मचर्य स्वीकार किया। तेले के पूर्ण हो जाने पर वह पौषधशाला से बाहर निकला। बाहर निकलकर, जहाँ स्नानघर था, वहाँ आया। आकर स्नान किया, नित्यनैमित्तिक कृत्य किये। देहसज्जा की दृष्टि से नेत्रों में अंजन आंजा, ललाट पर तिलक लगाया, दुःस्वप्नादि दोष-निवारण हेतु चन्दन, कुंकुम, दही, अक्षत आदि से मंगल-विधान किया। उत्तम, प्रवेश्यराजसभा में, उच्चवर्ग में प्रवेशोचित श्रेष्ठ, मांगलिक वस्त्र भली-भांति पहने। थोड़े-संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। धूप, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ एवं मालाएँ हाथ में लीं। स्नानघर से बाहर निकला। बाहर निकल कर जहाँ तमिस्रा गुफा के दक्षिणी द्वार के कपाट थे, उधर चला। माण्डलिक अधिपति, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली पुरुष, राजसम्मानित विशिष्ट जन, जागीरदार तथा सार्थवाह आदि सेनापति सुषेण के पीछे-पीछे चले, जिनमें से कतिपय अपने हाथों में कमल लिये थे। बहुत सी दासियां पीछे-पीछे चलती थीं, जिनमें से अनेक कुबड़ी थीं, अनेक किरात देश की थीं। (अनेक बौनी थीं, अनेक ऐसी थीं, जिनकी
१. देखें सूत्र संख्या ४४