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द्वितीय वक्षस्कार]
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असहनशीलता के कारण हिंस्य-हिंसक भाव, तदुन्मुख अध्यवसाय, महायुद्ध-व्यूह-रचना तथा व्यवस्थावर्जित महारण, महासंग्राम-व्यूह-रचना एवं व्यवस्थायुक्त महारण, महाशस्त्र-पतन-नागबाण तामसबाण, पवनबाण, अग्निबाण आदि दिव्य अस्त्रों का प्रयोग तथा महापुरुष-पतन-छत्रपति आदि विशिष्ट पुरुषों का वध, महारुधिरनिषतन-छत्रपति आदि विशिष्ट जनों का रक्त-प्रवाह-खून बहाना-ये सब होते हैं ?
गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य वैरानुबन्ध-शत्रुत्व के संस्कार-से रहित होते हैं।
(२३) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे दुब्भूआणि वा, कुलरोगाइ वा, गामरोगाइ वा, मंडलरोगाइवा, पोट्टरोगाइ वा, सीसवेअणाइवा, कण्णो?अच्छिणहदंतवेअणाइवा, कासाइ वा, सासाइ वा, सोसाइ वा, दाहाइ वा, अरिसाइ वा, अजीरगाइ वा, दओदराइ वा, पंडुरोगाइ वा, भगंदराइवा, एगाहिआइवा, वेआहिआइवा, तेआहिआइवा, चउत्थाहिआइवा, इंदग्गहाइ वा, धणुग्गहाइवा, खंदग्गहाइ वा, जक्खग्गहाइवा, भूअग्गहाइवा, मत्थसूलाइ वा, हिअयसूलाइ वा, पोट्टसूलाइवा, कुच्छिसूलाइवा, जोणिसूलाइवा, गाममारीइ वा,(आगरमारीइवा, णयरमारीइ वा, णिगममारीइ वा, राग्रहाणीमारीइ वा, खेडमारीइ वा, कब्बडमारीइ वा, मडंबमारीइ वा, दोणमुहमारीइ वा, पट्टणमारीइ वा, आसममारीइ वा, संवाहमारीइ वा,) सण्णिवेसमारीइ वा, पाणिक्खया, जणक्खया, वसणब्भूअमणारिआ? .
गोयमा ! णो इणढे समढे, ववगयरोगायंका णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो !
(२३) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में दुर्भूत-मनुष्य या धान्य आदि के लिए उपद्रव हेतु, चूहों टिड्डियों आदि द्वारा उत्पादित ईति -संकट, कुल-रोग-कुलक्रम से आये हुए रोग, ग्राम-रोग-गाँव भर में व्याप्त रोग, मंडल-रोग-ग्रामसमूहात्मक भूभाग में व्याप्त रोग, पोट्ट-रोग-पेट सम्बन्धी रोग, शीर्षवेदना-मस्तक पीड़ा, कर्ण-वेदना, ओष्ठ-वेदना, नेत्र-वेदना, नख-वेदना, दंत, वेदना, खांसी, श्वास-रोग, शोष-क्षय-तपेदिक, दाह-जलन, अर्श-गुदांकुर-बवासीर, अजीर्ण, जलोदर, पांडुरोग-पीलिया, भगन्दर, एक दिन से आने वाला ज्वर, दो दिन से आने वाला ज्वर, तीन दिन से आने वाला ज्वर, चार दिन से आने वाला ज्वर, इन्द्रग्रह, धनुर्ग्रह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह आदि उन्मत्तता हेतु व्यन्तरदेव कृत उपद्रव, मस्तक-शूल, हृदय-शूल, कुक्षि-शूल, योनि-शूल, गाँव, (आकर नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, सम्बाध,) सनिवेश-इन में मारि-किसी विशेष रोग द्वारा एक साथ बहुत से लोगों की मृत्यु, जन-जन के लिए व्यसनभूत-आपत्तिमय, अनार्य-पापात्मक, प्राणि-क्षय-महामारि आदि द्वारा गाय, बैल आदि प्राणियों का नाश, जन-क्षय-मनुष्यों का नाश, कुल-क्षय-वंश का नाश-ये सब होते
आयुष्मन् गौतम! वे मनुष्य रोग-कुष्ट आदि चिरस्थायी बीमारियों तथा आतंक-शीघ्र प्राण लेने वाली शूल आदि बीमारियों से रहित होते हैं।
१. अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषिकाः शलभाः शुकाः ।
अत्यासन्नाश्च राजानः षडेता ईतयः स्मृताः॥