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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र कामना लिए भृगु-पतन करे - गिरकर प्राण दे दे, विषम - जिन पर चढ़ना-उतरना कठिन हो, ऐसे स्थान, विज्जल - चिकने कर्दममय स्थान — ये सब होते हैं ? ५० ] गौतम ! ऐसा नहीं होता । उस समय भरतक्षेत्र में बहुत समतल तथा रमणीय भूमि होती है । वह मुरज के ऊपरी भाग आदि की ज्यों एक समान होती है। ( १९ ) अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे खाणून वा, कंटगतणकयवराइ वा, पत्तकयवराइ वा ? णो इट्टे समट्ठे, ववगयखाणुकंटगतणकयवरपत्तकयवरा णं सा समा पण्णत्ता । (१९) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में स्थाणु - ऊर्ध्वकाष्ठ - शाखा, पत्र आदि से रहित वृक्षठूंठ, कांटे, तृणों का कचरा तथा पत्तों का कचरा - ये होते हैं । गौतम ! ऐसा नहीं होता। वह भूमि स्थाणु, कंकट, तृणों के कचरे तथा पत्तों के कचरे से रहित होती है। (२०) अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा, मसगाइ वा, जूआइ वा, लिक्खाइ वा, ढिकुणाइ वा, पिसुआइ वा ? णो इट्ठे समट्टे, ववगयडंसमसगजू अलिक्खढिंकुणपिसुआ उवद्दवविरहिआ णं सा समा पण्णत्ता । (२०) भगवन्! क्या उस समय भरतक्षेत्र में डांस, मच्छर, जूंयें, लीखें, खटमल तथा पिस्सू होते हैं ? गौतम! ऐसा नहीं होता। वह भूमि डांस, मच्छर, जूं, लीख, खटमल तथा पिस्सू वर्जित एवं उपद्रवविरहित होती है। ( २१ ) अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे अहीइ वा अयगराइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुआणं आबाहं वा, (वाबाहं वा, छविच्छेअं वा उप्पायेंति, ) पगइभद्दया णं वालगगणा पण्णत्ता । (२१) भगवन्! क्या उस समय भरतक्षेत्र में साँप और अजगर होते हैं ? गौतम! होते हैं, पर वे मनुष्यों के लिए आबाधाजनक, (व्यावाधाजनक तथा दैहिक पीड़ा व विकृतिजनक ) नहीं होते। वे सर्प, अजगर (आदि सरीसृप जातीय -रेंगकर चलने वाले जीव) प्रकृति से भद्र होते हैं । (२२) अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे डिंबाइ वा, डमराइ वा, कलहबोलखारवइरमहाजुद्धाइ वा, महासंगामाइ वा, महासत्थपडणाइ वा, महापुरिसपडणाइ वा, महारुहिरणिवडणाइ वा ? गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे, ववगयवेराणुबंधा णं ते मणुआ पण्णत्ता । (३२), भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में डिम्बभय - भयावह स्थिति, डमर—राष्ट्र उपद्रव, कलह + वाग्युद्ध, बोल- अनेक आर्त व्यक्तियों का चीत्कार, क्षार - खार, पारस्परिक ईर्ष्या, वैर में आभ्यन्तर,
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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