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मनुष्यों की आयु
३२. ( १ ) तीसे णं भंते ! समाए भारहे वासे मणुआणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । [३२] (१) भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों की स्थिति - आयुष्य कितने काल का होता
है ?
गौतम! उस समय उनका आयुष्य जघन्य - कुछ कम तीन पल्योपम का तथा उत्कृष्ट - तीन पल्योपम का होता है ।
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
(२) तीसे णं भंते ! समाए भारहे वासे मणुआणं सरीरा केवइअं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं देसूणाई तिण्णि गाउआई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउआई ।
(२) भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों के शरीर कितने ऊँचे होते हैं ? गौतम ! उनके शरीर जघन्यत: कुछ कम तीन कोस तथा उत्कृष्टः तीन कोस ऊँचे होते हैं । (३) ते णं भंते! मणुआ किंसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणी पण्णत्ता ।
(३) भगवन् ! उन मनुष्यों का संहनन कैसा होता है ? गौतम ! वे वज्र - ऋषभ - नारिच - संहनन युक्त होते हैं ।
हैं ?
(४) तेसिं णं भंते ! मणुआणं सरीरा किंसंठिआ पण्णत्ता ?
गोयमा! समचउरंससंठाणसंठिआ पण्णत्ता । तेसि णं मणुआणं बेछप्पण्णा पिट्ठकरंडयसया पण्णत्ता समणाउसो !
(४) भगवन् ! उन मनुष्यों का दैहिक संस्थान कैसा होता है ?
आयुष्मन् गौतम! वे मनुष्य सम-चौरस संस्थान - संस्थित होते हैं । उनके पसलियों की दो सौ छप्पन हड्डियाँ होती हैं।
(५) ते णं भंते! मणुआ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छन्ति, कहिं उववज्जंति ? गोयमा! छम्मासावसेसाउ जुअलगं पसवंति, एगूणपण्णं राइंदिआई सारक्खंति, संगोवेंति; गोवेत्ता, कासित्ता, छीइत्ता, जंभाइत्ता, अक्किट्ठा, अव्वहिआ, अपरिआविआ कालमासे कालं किच्चा देवलोएसु उववज्जंति, देवलोअपरिग्गहा णं ते मणुआ पण्णत्ता ।
(५) भगवन्! वे मनुष्य अपना आयुष्य पूरा कर - मृत्यु प्राप्त कर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न
!
गौतम! जब उनका आयुष्य छह मास बाकी रहता है, वे युगल - एक बच्चा, एक बच्ची उत्पन्न करते हैं। उनपचास दिन-रात उनकी सार-सम्हाल करते हैं - पालन, पोषण करते हैं, संगोपन - संरक्षण करते हैं ।