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द्वितीय वक्षस्कार]
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वा, आदंसिआइ वा, आगासफलोवमाइ वा, उवमाइ वा, अणोवमाइ वा।
एयारूवे?
गोयमा ! णो इणठे समटे, साणं पुढवी इतो इट्टतरिआचेव,(पियतरिआचेव, कंततरिआ चेव, मणुण्णतरिआ चेव,) मणामतरिआ चेव आसाएणं पण्णत्ता।
तेसि णं भंते ! पुष्फफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते ?
गोयमा ! से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स कल्लाणे भोअणजाए सयसहस्सनिप्फन्ने वण्णेणुववेए, (गंधेणं उववेए, रसेणं उववेए) फासेणंउववेए,आसायणिज्जे, विसायणिज्जे, दिप्पणिज्जे, दप्पणिज्जे, मयणिज्जे, बिंहणिज्जे, सव्विंदिअगायपहायणिज्जे-भवे एआरूवे?
गोयमा! णो इणढे समढे, तेसिंणं पुष्फफलाणं एत्तो इट्ठतराए चेव जाव' आसाए पण्णत्ते। [२९] भगवन् ! उन मनुष्यों को कितने समय बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ?
आयुष्मन् श्रमण गौतम! उनको तीन दिन के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। वे पृथ्वी तथा पुष्प-फल, जो उन्हें कल्पवृक्षों से प्राप्त होते हैं, का आहार करते हैं।
भगवन्! उस पृथ्वी का आस्वाद कैसा होता है ?
गौतम! गुड़,खांड, शक्कर, मत्स्यंडिका-विशेष प्रकार की शक्कर, राब, पर्पट, मोदक-एक विशेष प्रकार का लड्डू, पुष्पोत्तर (शर्करा विशेष), पद्मोत्तर (एक प्रकार की शक्कर), विजया, महाविजया, आकाशिका, आदर्शिका, आकाशफलोपमा, उपमा तथा अनुपम-ये उस समय के विशिष्ट आस्वाद्य पदार्थ होते हैं।
भगवन् ! क्या उस पृथ्वी का आस्वाद इनके आस्वाद जैसा होता है ? गौतम! ऐसी बात नहीं है-ऐसा नहीं होता।
उस पृथ्वी का आस्वाद इनसे इष्टतर-सब इन्द्रियों के लिए इनसे कहीं अधिक सुखप्रद, (अधिक प्रियकर, अधिक कांत, अधिक मनोज्ञ-मन को भाने वाला) तथा अधिक मनोगम्य-मन को रुचने वाला होता है।
भगवन् ! उन पुष्पों और फलों का आस्वाद कैसा होता है ?
गौतम! तीन समुद्र तथा हिमवान् पर्यन्त छःखंड के साम्राज्य के अधिपति चक्रवर्ती सम्राट का भोजन एक लाख स्वर्ण-मुद्राओं के व्यय से निष्पन्न होता है। वह कल्याणकर-अति सुखप्रद, प्रशस्त वर्ण, (प्रशस्त गन्ध, प्रशस्त रस तथा) प्रशस्त स्पर्श युक्त होता है, आस्वादनीय-आस्वाद योग्य, विस्वादनीय-विशेष रूप से आस्वाद योग्य, दीपनीय-जठराग्नि का दीपन करने वाला, दर्पणीय-उत्साह तथा स्फूर्ति बढ़ाने वाला, मदनीय-मस्ती देने वाल, वृंहणीय-शरीर की धातुओं को उपचित-संवर्धित करने वाला एवं प्रह्लादनीय