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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सभी इन्द्रियों और शरीर को आह्लादित करने वाला होता है।
भगवन् ! उन पुष्पों तथा फलों का आस्वाद क्या उस भोजन जैसा होता है ?
गौतम! ऐसा नहीं होता। उन पुष्पों एवं फलों का आस्वाद उस भोजन से इष्टतर-अधिक सुखप्रद होता है। मनुष्यों का आवास : जीवन-चर्या
३०. ते णं भंते ! मणुया तमाहारमाहारेत्ता कहिं वसहिं उति ? गोयमा ! रुक्खगेहालया णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! तेसि णं भंते ! रुक्खाणं केरिसए आयारभावपडोआरे पण्णत्ते ?
गोयमा ! कूडागारसंठिआ, पेच्छाच्छत्त-झय-थूभ-तोरण-गोउर-वेइआ-चोप्फालगअट्टालग-पासाय-हम्मिअ-गवक्ख-वालग्गपोइआ-वलभीघरसंठिआ। अत्थपणे इत्थ बहवे वरभवणविसिट्ठसंठाणसंठिआ दुमगणा सुहसीअलच्छाया पण्णत्ता समणाउसो !
[३०] भगवन् ! वे मनुष्य वैसे आहार का सेवन करते हुए कहाँ निवास करते हैं ? । आयुष्मन् श्रमण गौतम! वे मनुष्य वृक्ष-रूप घरों में निवास करते हैं। भगवन् ! उन वृक्षों का आकार-स्वरूप कैसा है ?
गौतम! वे वृक्ष कूट-शिखर, प्रेक्षागृह-नाट्यगृह, छत्र, स्तूप-चबूतरा, तोरण, गोपुर-नगरद्वार, वेदिका-उपवेशन योग्य भूमि, चोप्फाल-बरामदा, अट्टालिका, प्रासाद-शिखरबद्ध देवभवन या राजभवन, हर्म्य-शिखर वर्जित श्रेष्ठिगृह-हवेलियां, गवाक्ष-झरोखे, वालाग्रपोतिका-जलमहल तथा वलभीगृह सदृश संस्थान-संस्थित हैं-वैसे विविध आकार-प्रकार लिये हुए हैं।
इस भरतक्षेत्र में और भी बहुत से ऐसे वृक्ष हैं, जिनके आकार उत्तम, विशिष्ट भवनों जैसे हैं, जो सुखप्रद शीतल छाया युक्त हैं।
३१. (१) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गेहाइ वा गेहावणाइ वा? गोयमा ! णो इणद्वे समढे, रुक्ख-गेहालया णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो !
[३१] (१) भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में क्या गेह-घर होते हैं ? क्या गेहायतन-उपभोग हेतु घरों में आयतन-आपतन या आगमन होता है ? अथवा क्या गेहापण-गृह युक्त आपण-दुकानें या बाजार होते हैं ?
आयुष्मन् श्रमण गौतम! ऐसा नहीं होता। उन मनुष्यों के वृक्ष ही घर होते हैं।
(२) अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गामाइ वा, (आगराइ वा, णयराइ वा, णिगमाइ वा, रायहाणीओ वा, खेडाइ वा, कब्बडाइ वा, मडंबाइ वा, दोणमुहाइ वा, पट्टणाइ वा, आसमाइ वा, संवाहाइ वा,) संणिवेसाइ वा।