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[ प्रज्ञापनासूत्र ]
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१७६१. मणूसा णं भंते! णाणावरणिज्जस्स पुच्छा ।
गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगाा य छव्विहबंधए य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ५ अहवा सत्तविहबंधगाा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए ६ अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगे य छव्विहबंधगाा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधए य ८ अहवा सत्तविहबंधगा य अविबंधगाय ९, एवं एते णव भंगा। सेसा वाणमंतराइया जाव वेमाणिया जहा णेरड्या सत्तविहादिबंधगा भणिया (सु. १७५८ [ १ ] ) तहा भाणियव्वा ।
[१७६१ प्र.] भगवन्! (बहुत से) मनुष्य ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधते
हैं ?
[ १७६१ उ.] गौतम ! १. सभी मनुष्य सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, २. अथवा बहुत से मनुष्य सात के बन्धक और कोई एक मनुष्य आठ का बन्धक होता है, ३ अथवा बहुत से सात के तथा आठ के बन्धक होते है, ४. अथवा बहुत से मनुष्य सात के और कोई एक मनुष्य छह का बन्धक होता है, ५. बहुत से मनुष्य सात के और बहुत से छह के बन्धक होते हैं, ६. अथवा बहुत से सात के बन्धक होते हैं, तथा एक आठ का एवं कोई एक छह का बन्धक होता है, ७. अथवा बहुत से सात के बन्धक कोई एक आठ का बन्धक और बहुत से छह के बन्धक होते हैं, ८. अथवा बहुत से सात के बहुत से आठ के और एक छह का बन्धक होता है, ९. अथवा बहुत से सात के, से आठ के और बहुत से छह के बन्धक होते हैं। इस प्रकार ये कुल नौ भंग होते हैं ।
बहुत
शेष वाणव्यन्तरादि (से लेकर) यावत् वैमानिक पर्यन्त जैसे (सू. १७५८ - १ में) नैरयिक सात आदि कर्मप्रकृतियों के बन्धक कहे हैं, उसी प्रकार कहने चाहिए ।
दर्शनावरणीयकर्मबन्ध के साथ अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध का निरूपण
१७६२. एवं जहा णाणावरणं बंधमाण जाहिं भणिया दंसणावरणं पि बंधमाण ताहिं जीवादीया एगत्त- पोहत्तेहिं भाणियव्वा ।
[१७६२] जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए जिन कर्म-प्रकृतियों के बन्ध का कथन किया, उसी प्रकार दर्शनावरणीयकर्म को बांधते हुए जीव आदि के विषय में एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा से उन कर्म प्रकृतियों के बन्ध का कथन करना चाहिए।
विवेचन • ज्ञान दर्शनावरणीय कर्म बन्ध के साथ अन्य कर्म-प्रकृतियों के बन्ध का निरूपण (१) समुच्चयजीव – सात, आठ या छह कर्मप्रकृतियों के बन्धक कैसे ? जीव जब ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध करता है, तब यदि आयुष्यकर्म का बन्ध न करे तो सात प्रकृतियाँ, यदि आयुष्य-बन्ध करे तो आठ कर्मप्रकृतियाँ बांधता है और जब मोहनीय और आयु दोनों का बन्ध नहीं करता, तब छह कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है। ऐसे