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________________ ८२] [चौवीसवाँ कर्मबन्धपद] [१७५७- प्र.]भगवन्! (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधते हैं ? [१७५७ उ.] गौतम! १. सभी जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते है; २. अथवा बहुत से जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक और कोई एक जीव छह का बन्धक होता है; ३. अथवा बहुत से जीव सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं। १७५८. [१] णेरड्या णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा! सव्वे वि ताव होजा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य, ३ तिण्णि भंगा [१७५८-१ प्र.] भगवन् ! (बहूत से) नैरयिक ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियाँ बांधते [१७५८-१ उ.] गौतम! १. सभी नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं अथवा २. बहुत से नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक और एक नैरयिक आठ कर्म-प्रकृतियों का बन्धक होता है, अथवा ३. बहुत से नैरयिक सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं। ये तीन भंग होते हैं। [२] एवं जाव थणियकुमारा। [१७५८-२] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। १७५९. [१] पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा! सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहबंधगा वि। . [१७५९-१ प्र.] भगवन् ! (बहुत) पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधते हैं ? [१७५९-१ उ.] गौतम! वे सात कर्मप्रकृतियों के भी बन्धक होते है, आठ कर्मप्रकृतियों के भी । [२] एवं जाव वणस्सइकाइया । [१७५९-२] इसी प्रकार यावत् (बहुत) वनस्पतिकायिक जीवों के सम्बन्ध में कहना चाहिए। १७६०. वियलाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य तियभंगो-सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३। [१७६०] विकलेन्द्रियों और तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रियजीवों के तीन भंग होते हैं – १. सभी सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते है, २. अथवा बहुत से सात कर्मप्रकृतियों के और कोई एक आठ कर्मप्रकृतियों का बन्धक होता है, ३. अथवा बहुत से सात के तथा बहुत से आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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