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________________ चउवीसइमं कम्मबंधपयं चौवीसवाँ कर्मबन्धपद ज्ञानावरणीयकर्म के बंध के समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध की प्ररूपणा १७५४. [१] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? ' गोमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ । तं जहा णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । [१७५४-१ प्र.] भगवन् ! कर्म-प्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? [१७५४-१ उ.] गौतम! कर्म-प्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, यथा[२] एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । [१७५४-२] इसी प्रकार नैरयिकों (से लेकर) वैमानिकों तक ( के आठ कर्मप्रकृतियाँ हैं । ) १७५५. जीवे णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा । [१७५५ प्र.] भगवन्! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? [ १७५५ उ.] गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्मप्रकृतियों का बन्धक होता है । १७५६. [ १ ] णेरइए णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंध वा । — ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । [१७५६-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ? [ १७५६-१ उ.] गौतम! वह सात या आठ कर्मप्रकृतियाँ बांधता है। [२] एवं जाव वेमाणिए । णवरं मणूसे जहा जीवे (सु. १७५५ ) । [१७५६-२] इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कथन करना चाहिए। विशेष यह है कि मनुष्य-सम्बन्धी कथन (सू. १७५५) समुच्चय जीव के समान जानना चाहिए। १७५७. जीवा णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगाा य अट्ठविहबंधगाा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ३ ।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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